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2122/ 2122/ 212

मेरा ग़म लगता है हमसाया मुझे

जीने का फन ग़म ने सिखलाया मुझे

 

ये हवा मेरे मुताबिक तो नहीं

कौन तेरे शह्र में लाया मुझे

 

मुश्किलों में सिर्फ मेरी जाँ नहीं

खौफ़ में हर इक नज़र आया मुझे

 

हौसला, हिम्मत, दुआएँ, दोस्ती

तज़्रिबे ने बख़्शा सरमाया मुझे

 

धूप की शिद्दत बहुत थी राह में

माँ के आँचल से मिली छाया मुझे

 

कौन सा मैं रंग दूँ तुझको ग़ज़ल

ज़ीस्त के रंगों ने उलझाया मुझे

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 25, 2014 at 6:24pm

आदरणीया डॉ प्राची आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 11:52am

सभी शेर बहुत खूबसूरत हुए हैं... पुरअसर हैं 

हार्दिक बधाई आ० शिज्जू जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 19, 2014 at 9:56pm

आदरणीया गीतिका जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by वेदिका on June 19, 2014 at 3:29am
कौन सा मैं रंग दूँ तुझको ग़ज़ल
ज़ीस्त के रंगों ने उलझाया मुझे .... कुर्बान इस रंग के चुनाव की अदा पर
हौसला, हिम्मत, दुआएँ, दोस्ती
तज़्रिबे ने बख़्शा सरमाया मुझे .. माशाल्लाह बहुत खूब तजुर्बा
बहुत बहुत शुभकामनायें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 17, 2014 at 9:22pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपकी उपस्थिति सदैव उत्साहवर्धन करती है स्नेह बना रहे।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2014 at 1:02pm

शिज्जू भाई

बहुत सुन्दर गजल कही आपने i हर  शे-र में वज्न है i बधाई हो i

कृपया ध्यान दे...

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