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ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये - ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये

बेख़िरद को सिर्फ़ चेहरा चाहिये                      बेख़िरद =कम अक्ल

 

हो गया है ताज़िरों का ये वतन                        ताज़िर=व्यापारी

खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये

 

बच तो आयें लहरों से अहले जिगर

बस उन्हें कोई किनारा चाहिये

 

तख़्त पर जिसने बिठाया उनका कर्ज़

जानो दिल से अब चुकाना चाहिये

 

आप भी हँस लीजिये इस बात पर

झूठे को अब काम सच्चा चाहिये

 

बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत

अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:16pm

आदरणीय सौरभ सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2014 at 11:49pm

ग़ज़ल के लिए धन्यवाद भाई शिज्जू जी.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 25, 2014 at 6:25pm

आदरणीया डॉ प्राची रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:24pm

आज के दौर में जो भाव आम प्रबुद्ध जन के मन में हैं उस पर सुन्दर अशआर कहे हैं आ० शिज्जू जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 24, 2014 at 11:12am

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद, ये बस आप बड़ों का आशीष है कि कुछ कह लेता हूँ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 19, 2014 at 10:14pm

आदरणीय शिज्जू भाई , वर्तमान पर बहुत खूबसूरत ख़यालों को खूब सूरत लफ्ज़ मिले हैं , पूरी ग़ज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 19, 2014 at 9:47pm

आदरणीया महिमा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 19, 2014 at 9:47pm

आदरणीय विजय निकोर सर रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 19, 2014 at 9:46pm

आदरणीय सुशील सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 7:54pm

बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत

अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये... क्या खूब कही है आ. शिज्जू जी ... बहुत -२ बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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