सोचते ही रहे खेत जोता नहीं
प्यार के फूल क्यों कोई बोता नहीं
लुट गई देख अबला कि अस्मत यहाँ
शर्म से कोई आँखे भिगोता नहीं
तोड़ कर कोई जाता न दिल प्यार में
साथ अपनो का अब कोई खोता नहीं
सोच हैरान क्यों रोज इज्जत लुटे
चैन की नी़ंद क्यो़ं कोई सोता नहीं
क्या भरोसा करें हम किसी का सनम
आदमी आदमी का ही होता नहीं
बात में बात सबकी मिलाता रहूँ
आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
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हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है, आपको प्रणाम आदरणीय नरेन्द्र सिह चौहान जी
हम आपके उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन के सदैव आकांक्षी है, रचना आपको पसंद आयी आपने रचना पर अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप आशीवाद दिया आपको प्रणाम आदरणीया डा0 प्राची सिंह जी
बढ़िया अश'आर हुए हैं
बहुत बहुत बधाई आ० अखंड गहमरी जी
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