तुम रुको,
मैं स्नेह से
दीपक जला लूँ.
तुम झुको,
मनुहार से मैं
चित्र भावों का बना लूँ .
कौन जाने कब
मिले फिर
आज तो यह गीत गालूँ.
तुम रुको,
मैं स्नेह से
दीपक जला लूँ.
विजयप्रकाश
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० विजय निकोर जी,रचना आपको पसंद आयी , प्रोत्साहन के लिए आभार.
भाव उत्तम हैं, बधाई विजय जी।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार -यह क्षणिका आपको पसंद आयी ,
हार्दिक आभार।स्नेह बनाये रखें .
प्रस्तुत क्षणिका में उत्सर्ग के अनुपम एवं पवित्र भाव साझा हुए हैं आदरणीय
शुभकामनाएँ व सादर बधाइयाँ
रचना आपको पसंद आयी .
सराहने के लिए बहुत बहुत आभार मीना जी.
बेहतरीन रचना .. बधाई आप को आदरणीय विजय जी
आभार गिरिराज भाई.स्नेह बनाये रखें.
सुनदर भाव्व अभिव्यक्ति , आदरणीय बधाइयाँ ॥
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