वैसे तो मैं
हर डगर से पहुँच जाता हूँ
तेरे पास .
मगर यह
प्रेम डगर बहुत कठिन है.
तुम्ही आ जाओ न
ढलान से होकर.
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० सौरभ पाण्डेय जी,
मेरे छोटे- छोटे प्रयास को मान देने के लिए आपका बहुत- बहुत धन्यवाद सह आभार.
आ० विजय निहोरे जी,
यह कविता आपको भाई, आपने दे दी बधाई,
बहुत- बहुत धन्यवाद सह आभार.
बहुत ही सुन्दर भाव हैं। बधाई, आदरणीय विजय जी।
आपकी छोटी किन्तु अत्यंत प्रखर रचनाओं का आस्वादन ले रहा हूँ. भला लग रहा है.
सादर धन्यवाद आदरणीय
डॉ, प्राची सिंह जी,रचना आपको पसंद आयी , प्रोत्साहन के लिए आभार.
बहुत मुलायम भावनाओं को मुखर किया है....
सही है कई बार सफ़र तय कर पाना संभव नहीं होता ...मन को कई कई कारण रोक लेते हैं बाँध लेते हैं..... तो मन ही मन प्रिय से ये निवेदन कि इस राह पर वो ही कुछ कदम बढ़ा लें..... खूबसूरत एहसास
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर आ० डॉ० विजय शर्मा जी
आदरणीया कल्पना रामानी जी ,
आपकी सराहना पाकर मेरे साथ-साथ मेरी कविता भी धन्य हो गई. कृपा बनाये रखें.
छोटी सी सुंदर कविता बहुत पसंद आई। आपको हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जी
आभार मीना जी , जीतेन्द्र जी -आपने हमारा मान बढ़ाया. स्नेह बनाय रखें.
सभी पाठको का आभार.
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