१२२२ १२२२ १२२२ १२२
मेरे हाथों में तारे देख कर वो क्यूँ जला है
मेरे मालिक तेरा इंसान जाने क्या बला है
लड़ा ताउम्र दरिया हौसलों के साथ अपने
लगाया था गले जिनको उन्हें ही क्यूँ खला है
घुसे थे झाड़ियों में तो बहुत ज्यादा संभलकर
थे हम भी बेखबर उस नाग से जो घर पला है
बड़ा मुश्किल है फहराना ये परचम शोहरत का
यकीनन कारवा पहले या आखिर में चला है
नहीं शिकवा गिला हमको कभी भी आपसे था
कभी खिलता ये गुल भी नागफनियों में भला है
हकीकत की ही तो मैं सच बयानी कर रहा हूँ
सफ़र में जो चला है वो अकेला ही चला है
जिगर के गहरे में ये अजनबी सा डर है मेरे
भला इंसान क्यूँ लगता नहीं मुझको भला है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत खूबसूरत गजल ,आशुतोष जी हौसला बढाने के लिए आभार आप का
क्या बात है .. बहोत खूब ... बधाई
वाह !! बहुत खूबसूरत गजल , आ0 आशुतोष जी ।
आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
जिगर के गहरे में ये अजनबी सा डर है मेरे
भला इंसान क्यूँ लगता नहीं मुझको भला है --- बहुत खूब भाई जी , बधाई ॥
आदरणीय लक्षमण जी हौसल अफजाई के लिए तहे दिल शुक्रिया सादर
आदरणीय गोपाल सर..आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद है ..जिसकी मैं सतत कामना करता हूँ ..हार्दिक धन्यवाद और सादर प्रणाम के साथ
आदरणीया डॉ प्राची जी ..आपके ये शब्द मेरा मनोबल बढाते हैं ..मुझे रचना धर्मिता की नयी उर्जा प्रदान करते हैं ..भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रियाओं मुझे मिलती रहेगी इसी कामना के साथ ..सादर
आदरणीय नरेन्द्र जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार ..सादर
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपकी स्नेहिल शब्दों के लिए लिए तहे दिल शुक्रिया ..सादर
आदरनीय अभिनव जी ..उत्साहवर्धक आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online