२१२२ ११२२ २१२२
कुछ जलाना तो चिरागों को जलाओं
पी के तम को ये जहाँ रोशन बनाओ
चल पड़ा है वो मसीहा जग बदलने
राह से कांटे सभी उसको हटाओ
आज चिलमन है हमारे दरमिया क्यों
नाजनीनो यूं न हमको तुम सताओ
सब की हम पर ही नजर है बज्म में अब
जाम नजरों से हमें छुपकर पिलाओं
है सबब कोई खफा जो हमसे हो तुम
बेकली दिल की बढ़ी कुछ तो बताओ
बात बज्मों में निगाहें ही करेंगी
तुम भी जो कहना इशारों में बताओं
देख कर हमको शरम से लाल हो तुम
बंद कर ली लो जी आँखे मत लजाओ
जीना बचपन को जवानी में अगर हो
नाव कागज़ की ये बारिश में चलाओ
देखना हो जो पुराना प्यार माँ का
घर के कोने में कहीं खुद को छिपाओ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुन्दर अश'आर हुए हैं आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी
दो मिसरों पर मैं अटक रही हूँ... कृपया देखें
राह से कांटे सभी उसको हटाओ.........क्या यहाँ उसको शब्द ही लिया गया है ?
बंद कर ली लो जी आँखे मत लजाओ...ये मिसरा भी अस्पष्ट लग रहा है
ग़ज़ल के खूबसूरत कहन पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
//जीना बचपन को जवानी में अगर हो
नाव कागज़ की ये बारिश में चलाओ// वाह क्या बात है बहुत बढ़िया
आदरणीय डॉ आशुतोष सर इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ...आपका मार्गदर्शन और स्नेह बस यूं ही मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपकी उत्साग्वर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय सुरेन्द्र जी ..रचना को संसोधित करूंगा ..टंकन की गलती से ऐसा हो गया ..आपके स्नेह के लिए तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय नरेन्द्र जी हौसला अफजाई के लिए तहे दिल शुक्रिया सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , शुरू से आखिर तक सभी अशआर लाजवाब हुये है , दिली बधाइयाँ ।
चल पड़ा है वो मसीहा जग बदलने
राह से कांटे सभी उसको हटाओ
देखना हो जो पुराना प्यार माँ का
घर के कोने में कहीं खुद को छिपाओ - ----- बहुत सुन्दर , ढेरों दाद कुबूल करें ॥
जीना बचपन को जवानी में अगर हो
नाव कागज़ की ये बारिश में चलाओ..............शुद्ध देशी सन्देश
बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.आशुतोष जी
देखना हो जो पुराना प्यार माँ का
घर के कोने में कहीं खुद को छिपाओ
चल पड़ा है वो मसीहा जग बदलने
राह से कांटे सभी (उसको) उसके हटाओ
प्रिय डॉ आशुतोष जी सुन्दर भाव- माँ का स्नेह- अच्छी रचना हार्दिक बधाई
जय श्री राधे
भ्रमर ५
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