वह वृद्ध !!
कड़कती चिलचिलाती धूप मे
पानी की बूंद को तरसता
प्यास से विकल होंठो पर
बार बार जीभ फेरता
कदम दर कदम
बोझ सा जीवन, घसीटता
सर पर बंधे गमछे से
शरीर के स्वेद को
सुखाने की कोशिश भर करता
अड़ियल स्वेद
बार बार मुंह चिढ़ाता
थक कर चूर हुआ
वह वृद्ध !!
कुछ छांव ढूँढता
आ बैठा किसी घर के दरवाजे पर
गृह स्वामी का कर्कश स्वर –
हट ! ए बुड्ढे !!
दरवाजे पर क्यों ?
दो घूंट जल की ............
भटकन , कब खत्म होगी
शुष्क कंठ
अवरुद्ध वाणी , कातर नेत्र , हताश !! चल दिया
न मिली पानी की एक भी बूंद
काँपता , हाँफता
वह वृद्ध !!
अझेल ग्रीष्म अपने यौवन पर
हवा लपट सी
लगती तन पर
सर उठा निहारे वो अंबर
नैन मूँद कर
दिवाकर से कहता
कुछ पल शेष
कुछ कदम हैं शेष
बस कुछ कदम और
घर अब दूर नहीं
खुद को समझाता
वह वृद्ध !!!
सह न पाया
दिवाकर का ताप
कमजोर थी काया
गिरा भूमि पर
कुछ औचक
फिर उठा वह
झुरझुरी सी तन मे
फिर उठने की कोशिश भर
नाकाम !!!
आह !! क्या न चल सकूँगा
उठने का फिर किया प्रयास
किन्तु न उठ पाया
जीवन डोर छूटती सी लगी
होंठो पर जीभ फेर पुनः
पानी !! पानी !!! पानी !!!!
और न उठ पाया
वह वृद्ध !!!!!
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
प्रिय जितेंद्र जी आपका बहुत बहुत आभार ।
आ0 कुंती दीदी आपको रचना अच्छी लगी , मेरा लिखना सार्थक रहा । आपका आभार दीदी
बहुत मर्मस्पर्शी रचना, बहुत सजीव चित्रण . बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी
मानव जीवन की यह कैसी विडम्बना है...इंसान चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता....बहुत अच्छी रचना है.... आपको अनेक साधुवाद.
आ0 मीना दी आपके स्नेह का यही तो कमाल है कि आप हम सबको लाइन पर लगाए रखती है , कि भटकना नहीं सही दिशा मे चलते रहना है । आपका स्नेह हमे हमेशा इसी तरह मिलता रहे । धन्यवाद मीना दी
आप की लेखनी का यही तो कमाल है कि पूरा दृश्य नेत्रों के समक्ष चलचित्र की भाँती घूम जाता है .. बहुत बहुत सुन्दर रचना ,, ढेरों बधाई | सस्नेह
आ0 गोपाल नारायण जी आपको रचना अच्छी लगी , मेरा लिखना सार्थक हुआ । आपका हार्दिक आभार ।
अन्नपूर्णा जी
वाह कहूं या आह --? क्या चित्रोपम वर्णन हैं i ऐसा लगता है आपने तसव्वर नहीं किया अपितु उस वृद्ध को स्वयं जिया है i निराला जी याद आते है - वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता
पेट पीठ मिलकर है एक चल रहा लकुटिया टेक
मुठ्ठी भर दाने को मुह फ़ैलाने को
वह आता
आपकी सुन्दर कविता को प्रणाम i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online