For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?(ग़ज़ल 'राज')

122  122 122 122

मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?

वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?

 

नई  खुशबुएँ  हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?

 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?

 

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?

 

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?

 

 

वो बुधवा की बेवा नहीं दी दिखाई

हटी आज झुग्गी नया घर मिला क्या ?

 

भरोसा करो मूँद  आँखे चलो फिर

नहीं काटता वो तुम्हारा सगा क्या ?

 

 

तुम्ही ने कहा है बुरे दिन गए अब

बिना जांचे परखे भरोसा जमा क्या ?

 

नहीं चुटकियों में बड़े काम होते

जलेगा गरम है नहीं धीरता क्या ?

 

नया तख़्त देखो नया ‘राज’ देखो

मगर देखना है पुराना गया क्या ?

मनाज़िर =द्रश्य ,नज़ारे

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 811

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2014 at 5:05pm

प्रिय प्राची जी ,ग़ज़ल पर आपकी मुहर लग गई तो समझो मेरी ग़ज़ल मुकम्मल हुई तहे दिल से शुक्रिया आपका सस्नेह . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:08pm

आदरणीया राजेश जी 

बहुत सुन्दर अश'आर कहे हैं 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?............वाह!

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?..........सही है जड़ तो होगी ही..उसका कारण भी होगा 

इस सुन्दर ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाई लीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2014 at 9:25am

आप जैसी संवेदनशील रचनाकार  से सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ| आ० कल्पना रामानी दी ,आप का ह्रदय तल से आभार |

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:53pm

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?...

वाह! प्रिय राजेश जी, बहुत  शानदार गजल  कही है, मन से बधाई स्वीकार कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 19, 2014 at 1:44pm

आ० विजय निकोर जी, आपकी सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ और आश्वस्त भी हुई हूँ कि अशआर अपनी बात कहने में सफल हुए| 

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:12pm

//परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?//

गज़ल बहुत अच्छी बनी है, बधाई आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 19, 2014 at 11:40am

बहुत- बहुत शुक्रिया जितेन्द्र भैय्या,आपको ग़ज़ल पसंद आई इस प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत- बहुत आभार|  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:51pm

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?...........वाह! बहुत ही लाजवाब

वाह! आदरणीया राजेश दीदी, बहुत ही बेहतरीन गजल, हरेक शेर चुटकी भरता हुआ. दिली बधाइयाँ आपको

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 18, 2014 at 12:50pm

अरुण अभिनव जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तारीफ़ के लिए आपका लख-लख शुक्रिया लिखना सार्थक हुआ |

Comment by Abhinav Arun on June 18, 2014 at 11:43am
नई खुशबुएँ हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?...हर शेर उम्दा , बेहतरीन ग़ज़ल आ. राजेश जी , बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
29 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service