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उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?(ग़ज़ल 'राज')

122  122 122 122

मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?

वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?

 

नई  खुशबुएँ  हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?

 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?

 

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?

 

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?

 

 

वो बुधवा की बेवा नहीं दी दिखाई

हटी आज झुग्गी नया घर मिला क्या ?

 

भरोसा करो मूँद  आँखे चलो फिर

नहीं काटता वो तुम्हारा सगा क्या ?

 

 

तुम्ही ने कहा है बुरे दिन गए अब

बिना जांचे परखे भरोसा जमा क्या ?

 

नहीं चुटकियों में बड़े काम होते

जलेगा गरम है नहीं धीरता क्या ?

 

नया तख़्त देखो नया ‘राज’ देखो

मगर देखना है पुराना गया क्या ?

मनाज़िर =द्रश्य ,नज़ारे

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2014 at 5:05pm

प्रिय प्राची जी ,ग़ज़ल पर आपकी मुहर लग गई तो समझो मेरी ग़ज़ल मुकम्मल हुई तहे दिल से शुक्रिया आपका सस्नेह . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:08pm

आदरणीया राजेश जी 

बहुत सुन्दर अश'आर कहे हैं 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?............वाह!

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?..........सही है जड़ तो होगी ही..उसका कारण भी होगा 

इस सुन्दर ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाई लीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2014 at 9:25am

आप जैसी संवेदनशील रचनाकार  से सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ| आ० कल्पना रामानी दी ,आप का ह्रदय तल से आभार |

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:53pm

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?...

वाह! प्रिय राजेश जी, बहुत  शानदार गजल  कही है, मन से बधाई स्वीकार कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 19, 2014 at 1:44pm

आ० विजय निकोर जी, आपकी सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ और आश्वस्त भी हुई हूँ कि अशआर अपनी बात कहने में सफल हुए| 

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:12pm

//परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?//

गज़ल बहुत अच्छी बनी है, बधाई आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 19, 2014 at 11:40am

बहुत- बहुत शुक्रिया जितेन्द्र भैय्या,आपको ग़ज़ल पसंद आई इस प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत- बहुत आभार|  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:51pm

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?...........वाह! बहुत ही लाजवाब

वाह! आदरणीया राजेश दीदी, बहुत ही बेहतरीन गजल, हरेक शेर चुटकी भरता हुआ. दिली बधाइयाँ आपको

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 18, 2014 at 12:50pm

अरुण अभिनव जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तारीफ़ के लिए आपका लख-लख शुक्रिया लिखना सार्थक हुआ |

Comment by Abhinav Arun on June 18, 2014 at 11:43am
नई खुशबुएँ हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?...हर शेर उम्दा , बेहतरीन ग़ज़ल आ. राजेश जी , बधाई !!

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