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उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?(ग़ज़ल 'राज')

122  122 122 122

मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?

वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?

 

नई  खुशबुएँ  हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?

 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?

 

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?

 

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?

 

 

वो बुधवा की बेवा नहीं दी दिखाई

हटी आज झुग्गी नया घर मिला क्या ?

 

भरोसा करो मूँद  आँखे चलो फिर

नहीं काटता वो तुम्हारा सगा क्या ?

 

 

तुम्ही ने कहा है बुरे दिन गए अब

बिना जांचे परखे भरोसा जमा क्या ?

 

नहीं चुटकियों में बड़े काम होते

जलेगा गरम है नहीं धीरता क्या ?

 

नया तख़्त देखो नया ‘राज’ देखो

मगर देखना है पुराना गया क्या ?

मनाज़िर =द्रश्य ,नज़ारे

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2014 at 11:17am

आदरनीया राजेश जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही  है आपने , ये ग़ज़ल मुझे आपकी लाजवाब ग़ज़लों मे से एक लगी । सभी अशाअर बहुत बढ़िया हैं , इसीलिये किसी एक का चुनाव नही कर पा रहा हूँ , ढेरों दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by Shashi Mehra on June 17, 2014 at 11:04am

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