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मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?
वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?
नई खुशबुएँ हैं नई सुब्ह महकी
सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?
परिंदा नया है नए पंख निकले
उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?
सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है
तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?
वहीँ आग होगी धुआँ है जहाँ पर
हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?
वो बुधवा की बेवा नहीं दी दिखाई
हटी आज झुग्गी नया घर मिला क्या ?
भरोसा करो मूँद आँखे चलो फिर
नहीं काटता वो तुम्हारा सगा क्या ?
तुम्ही ने कहा है बुरे दिन गए अब
बिना जांचे परखे भरोसा जमा क्या ?
नहीं चुटकियों में बड़े काम होते
जलेगा गरम है नहीं धीरता क्या ?
नया तख़्त देखो नया ‘राज’ देखो
मगर देखना है पुराना गया क्या ?
मनाज़िर =द्रश्य ,नज़ारे
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरनीया राजेश जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने , ये ग़ज़ल मुझे आपकी लाजवाब ग़ज़लों मे से एक लगी । सभी अशाअर बहुत बढ़िया हैं , इसीलिये किसी एक का चुनाव नही कर पा रहा हूँ , ढेरों दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
khoob
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