1212 1122 1212 22
हुई न खत्म मेरी दास्ताने ग़म यारो
हरेक लफ़्ज़ अभी अश्क़ से है नम यारो
है ज़िन्दगी तो यहाँ मुश्किलात भी होंगी
चलो जियें इसे हर सांस दम ब दम यारो
इधर चराग का जलना उधर हवा की रौ
ये मेरा ज़ोरे जिगर और वो सितम यारो
लिबास ही से न होगा कभी नुमायाँ सच
सफ़ेदपोश तो लगते हैं मुह्तरम यारो
रहा न बस कोई तहरीर पर किसी का अब
चलाना भूल गईं उँगलियाँ क़लम यारो
मैं रफ़्ता- रफ़्ता उबरने लगा हवादिस से
कि हौसला मेरे दिल में कहाँ है कम यारो
मुह्तरम =सम्माननीय
तहरीर =लिखावट
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
शिज्जू भाई
बहुत सुन्दर गजल i आपको ढेरो शुभकामनाये i
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