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कुण्डलिया ... मृगतृष्णा

( गुरुजनों की समीक्षार्थ प्रस्तुत )

तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय |

तपती रेत में देता , जल का बिम्ब दिखाय ||

जल का बिम्ब दिखाय,  बुझे पर प्यास न उसकी|

त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की ||

प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे - कृष्णा |

सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:26am

इस मंच पर उपलब्ध छन्दों से सम्बन्धित आलेखों का अध्ययन करें तदनुरूप प्रयास करें. अवश्य लाभ होगा.

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 27, 2014 at 1:20pm

आदरणीया शालिनी जी ..कुंडलियों मुझे पढने में अच्छी लगी तकनीकी पक्ष के बिषय में ज्यादा जानकारी नहीं है ..आदरणीय गोपाल सर की प्रतिक्रिया से ही इस बिषय पर कुछ जानकारी मैली ..ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2014 at 7:45pm

आदरनीया शालिनि जी , कुन्दलिया सुन्दर रची है , बधाइयाँ । आ. गोपाल भाई  की सलाहों पर गौर कीजियेगा ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 11:10am

सुन्दर भावों के साथ अच्छा प्रयास है . प्रबुद्ध जनों के सुझावों पर अमल करते रहें . जल्दी ही इस कला में माहिर हो जाएँगी . हार्दिक बधाई .

Comment by shalini rastogi on June 25, 2014 at 9:16pm

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद annapurna bajpai जी 

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 5:59pm

सुंदर भाव , अच्छा प्रयास । जारी रक्खें । 

Comment by shalini rastogi on June 25, 2014 at 4:17pm

हार्दिक आभार asha pandey ojha जी 

Comment by asha pandey ojha on June 25, 2014 at 4:15pm

utkrisht

Comment by shalini rastogi on June 24, 2014 at 6:13pm

आदरेया  rajesh kumari आपकी इस सुझावपरक  टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद !

Comment by shalini rastogi on June 24, 2014 at 6:11pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी , इतने विस्तार से दोहा छंद की बारीकियां समझाने के लिए धन्यवाद .. मैं वाक़ई इन बारीकियों से अनभिज्ञ थी .. प्रयास करुँगी की छंद विधान के अनुरूप शुद्धता ला सकूं .. कृपया मार्गदर्शन करते रहिये .. हार्दिक आभार!

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