हमें वो वेवफा कह कर बुलाते है सितम देखो
चुरा कर नीद रातो की सताते है सितम देखो
कभी मै देखता भी तो नहीं था जाम के प्याले
कसम दे कर मुझे अपनी पिलाते है सितम देखो
बडे अरमान से जिसने बनाया आशिया मेरा
वही उस आशिये को अब जलाते है सितम देखो
न रूठे वो कभी हमसे हमारे साथ चलते थे
मगर अब साथ गैरो का निभाते है सितम देखो
खुले जो लब कभी जिनके हमारा नाम ही निकले
न जाने क्यो वही हमको भुलाते है सितम देखो
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
इस कोशिश में एक गहराई है. सतत अभ्यास करते रहें भाईजी.
बहुत-बहुत बधाई
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय निलेश शवारकर जी आप के मार्गदर्शन अनुसार गजल के मूल प्रति में संसोधन किया दिया है त...
वाह बहुत खूब ....अच्छी ग़ज़ल ... बधाई आपको ...
उत्साहवर्धन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
उत्साहवर्धन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi"जी
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय जितेन्द्र गीत जी
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उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय शिज्जु शकूर जी
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय laxman dhami आप के मार्गदर्शन अनुसार संसोधन किया दिया हमने पुन: नमन
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