भुलाये तो भुलाये हम तुम्हारे प्यार को कैसे
सुनाये हाल दिल का हम बता संसार को कैसे
चली जाना जरा रुक जा मनाने दे हमें खुशियाँ
बिना तेरे मनायेगें किसी त्यौहार को कैसे
लुटा कर जान भी अपनी बचा पाते मुहब्बत को
मिले खुशियाँ हमें कितनी बताये यार को कैसे
करो नफरत भले हमसे हमारी बात सुन लो तुम
गिराये आज नफरत की खड़ी दीवार को कैसे
नहीं दिखता जनाजा क्या तुझे अब जा चुके है हम
दिखाओगी भला अब तुम किये श्रृंगार को कैसे
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
आदरणीय अखंड भाई , गज़ल बह्र मे है और अच्छी कही है , कुछ कमियाँ आदरणीय अरुण भाई बताये हैं , ध्यान देने योग्य हैं , ज़रूर ध्यान दीजियेगा ॥
आदरणीय गहमरी जी ग़ज़ल बह्र में है अच्छी भी है किन्तु स्पष्ट नहीं लगी मुझे, बह्र पर आपकी पकड़ हो गई है अब शिल्प एवं कथ्य पर भी काम कीजिये. इस प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय संन्तलाल करूण जी
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन पर नमन स्वीकार करें आदरणीय जितेन्द्र गीत जी
मित्र गहमरी
बहुत सुन्दर i क्या बात है i
बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय अखंड जी , बधाई आपको
आदरणीय गहमरी जी, अच्छी-सी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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