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दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से

 

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़

आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

 

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

 

और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा

इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से

 

बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से*

 

मुबहम =अस्पष्ट, आफ़ाक़ =दुनिया

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 14, 2014 at 7:38pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 14, 2014 at 7:38pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 14, 2014 at 7:37pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 14, 2014 at 3:11pm

शिज्जू भाई

बहुत बहुत बधाई i सभी अशआर बहुत उम्दा i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 14, 2014 at 9:54am

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से........... 'सच' को बहुत खूबसूरती से बह्र में बाँधा है आपने

 

और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा

इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से.........क्या बात कही है आपने, नमन आपकी लेखनी को

बहुत ही बेमिसाल गजल आदरणीय शिज्जू जी, तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजियेगा

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 14, 2014 at 7:49am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 14, 2014 at 2:19am
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से
बहुत खूब , बधाई आ o शिज्जू शकूर जी .

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