"गीत"
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श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
आ रहे महबूब मेरे
दिल कहे श्रृँगार कर ।
द्वार पर कलियाँ बिछा कर
बावरी सत्कार कर ।
प्यार पर सब वार कर
-दुल्हन सदृश अभिसार कर ।
अब गले लग प्राण प्रिय से
डर भला किस बात का |
श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
चाहती पलकें भी बिछना
हर कदम पर प्यार से |
कह रही हैं धडकनें भी
नाथ आ अब द्वार पे |
खिल गई चम्पा निशा में
भाव तीव्र सत्कार रख |
झुक गईं सब डालियाँ भी
पुष्प हर सिंगार का ||
श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
(मौलिक अप्रकाशित )
Comment
बहुत सुंदर रचना ॥ बधाई माह की श्रेष्ट रचना के लिए॥
आदरणीया छायाजी
भावपूर्ण प्रवाहमयी रचना पाठक को ब्रज तक ले गई। हार्दिक बधाई अगस्त माह की श्रेष्ट रचना के लिए
सुंदर गीत और महीने के चयनित गीत के लिए बहुत बहुत बधाई छाया शुक्लाजी।
दिल से धन्यवाद आपका बहन कल्पना रामानी जी सप्रेम !
बहुत सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई, आ॰ छाया जी
हार्दिक धन्यवाद narendrasingh chauhan जी गीत की सराहना के लिए नमन
आभार आपका jawahar lal singh जी
मीना पाठक जी दिल से शुक्रिया कबूल फरमाएं सुंदर सरहना के लिए !!
अति सुन्दर ....बहुत बहुत बधाई
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