मिला कंधा नहीं हमको पड़ी है लाश ठेले में
खिलाया क्यों ज़हर तुमने मिला कर हम को केले में
चली आ तू बहाने से मिलेगें आज हम दोनो
न आई तो समझ लेना फसा देगें झमेले में
न आती थी हमें नीदें कहें जब तक न गुडनाइट
किये हम रात भर बाते दिया जो फोन मेले में
पहन कर लाल जोड़ा तुम चली हो साथ क्याे उनके
करे हम ये दुआ रब से रहे तू तो तबेले में
सजाई मॉंग क्यों अपनी तड़पता छोड़ तू हमको
बहुत हम याद आयेगें रहोगी जब अकेले में
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
बहुत खूब, इस हास्य गजल पर बहुत-२ बधाई आदरणीय अखंड जी.
हास्य ग़ज़ल की कोशिश हुई है.
अभ्यासरत रहें, अच्छे जा रहे हैं.
शुभेच्छाएँ
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