बरामदे की सीढ़ियाँ देख , कजरी नीचे खड़ी हो गई , संकोच वश उसके कदम ऊपर बढ़ ही नहीं रहे थे ॥ लाली ने उसको पुकारा -'आओ ना , वहाँ क्यों खड़ी हो ? कजरी सकुचाते हुये बोली -' का है कि हम छोट जात है न , और हंम लोगन का बड़े लोगन के घर की चौखट के भीतर नहीं जाना होत है अइसा हमारी माई कहे रही !!' लाली ने उसका हाथ पकड़ा और ऊपर खींच लिया , ' चलो भी !! ' अंदर पहुँच कर बड़ी सी हवेली देख कजरी की अंखे चौंधिया गई । ' लागे है बहुत बड़े लोग हैं ' मन मे सोचा उसने । धीरे धीरे अंदर बढ़ती गई एक कमरे का किवाड़ थोड़ा खुला था और मालिक का बेटा किसी नौकरानी को बार बार पकड़ कर घसीट रहा था । वह बेचारी बार बार हाथ छुड़ा कर भागती और अपना काम करने लगती । कजरी के कदम ठिठक गए । वह लाली से बोली - ' उ कउन है जो भीतर बैठे है । और उ हमरी सहेली है रामकली !! ' लाली ने भीतर झाँका रामकली सफाई कर रही थी और छोटे मालिक उसको अपनी गंदी नियत से ताकने मे लगे थे । मन ही मन बुदबुदाई लाली - ' ले आज इसकी बारी , कहने को मुआ ऊंच जात है , ससुरा जात के नाम का कलंक !!! ' और आगे बढ़ ली ।
अप्रकाशित और मौलिक
अन्नपूर्णा बाजपेई
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अच्छी विषयवस्तु और बढ़िया कसावट ....बहुत बढ़िया आदरणीया
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