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कौन दे उल्लास मन को ? .. सुलभ अग्निहोत्री

कौन दे उल्लास मन को ? फिर वसन स्वर्णिम, किरन को ?
हो गये जो स्वप्न ओझल फिर दरस उनके नयन को ?

कोपलों पर पहरुये अंगार धधके धर रहे हैं
साधना कापालिकी उन्माद के स्वर कर रहे हैं
त्राहि मांगें अश्रु किससे, वेदना किसको दिखायें
कौन दे स्पर्श शीतल अग्निवाही इस पवन को ?

कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को ?

दिग्भ्रमित दिग्पाल सारे, भाल-नत नग-श्रंखलायें
नेत्र किसकी बाट जोहें, कण्ठ अब किसको बुलायें
वक्ष में घुमड़े घनों से, श्रान्त मन है, क्लान्त तन है
कौन आकर दे सकेगा कान्ति फिर धूसर गगन को ?

झुरमुटों को पुष्प मुकुलित, झुटपुटों को चन्द्रिका नव
आँधियों को मृदु समीरण, भीत खग को मुक्त कलरव
सृष्टि में मधु मोद भर के, हर्ष का अतिरेक भर के
कौन दे उत्साह, ऊर्जा, साधना-संचित सृजन को ?

------------------  मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment by Sulabh Agnihotri on November 23, 2014 at 10:59am

बहुत-बहुत आभार आदरणीय ! 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 3:56pm

क्या ही सुन्दर और प्रवाहमई नवगीत हुआ है. शब्द संयोजन और शैली बेहद मनमोहक है - वाह !

Comment by Sulabh Agnihotri on October 3, 2014 at 7:34pm

बहुत-बहुत आभार भाई  गिरिराज भंडारी  जी ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2014 at 9:24pm

कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते ---------- लाजवाब ! बढ़िया गीत रचना के लिए आपको बधाइयाँ |

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:49pm

बहुत-बहुत आभार भाई  laxman dhami  जी ! 

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:48pm

बहुत-बहुत आभार भाई Pawan Kumar  जी ! 

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:48pm

बहुत-बहुत आभार भाई harivallabh sharma  जी ! आपकी प्रशंसा से रचना को गौरव प्राप्त हुआ है।

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:47pm

बहुत-बहुत आभार भाई Vivek Jha जी ! 

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:47pm

बहुत-बहुत आभार भाई खुर्शीद जी ! आपकी प्रशंसा से रचना को गौरव प्राप्त हुआ है।

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 7:43pm

त-बहुत आभार rajesh kumari जी ! गुणग्राही जनों की अनुशंसा रचना को सार्थकता देती है।

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