बहुत सुंदर है
मीठा है बहुत,
बिलकुल मिश्री की तरह
मिल जाता है, कहीं भी
कभी भी, हर तरफ
खोखलापन लिए, समा जाये इसमें
कोई भी,कितना भी.
सच! ही तो है
असत्य जो है
कितना आसान है
इसे पाना, स्वीकारना
खुश हो लेना
चलायमान तो इतना
कि रुकता ही नहीं
अनेकों राहें, उनमे भी कई राहें
पूर्ण सामयिक ही बन बैठा है.
और वो देखो !.. सत्य
वहीं खड़ा है, अनंत काल से
न हिलता न डुलता
बस अडिग सा
न कोई भावनायें
न समय के साथ ,चलने का हुनर
बड़ा बे-शर्म है
कैसे रह लेता है..? बिना कपड़ो के
कठोरता , लोहे की तरह
जंग भी न लग पाए
देखो! न कितना विपरीत है, यह
असत्य से
इसे बस हमेशा
साबित ही करते रहो
न मिलनसार
न जाने क्यों..?
बहुत समय लेता है
आ जाता है अचानक, सामनेबहुत ही डरावना
न कोई सूरत, न कोमलता
गहरी,अथाह गहरी जड़ें
कहीं कोई डर नही
सच! में..
आज बहुत बदसूरत है.
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपके अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीया मीना दीदी
सादर!
रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद से रचना धन्य हुई , आदरणीय विजय निकोर जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
बहुत सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई
"सच" हमसे मानसिक शुद्धता माँगता है, और इसके बदले में कितना मनोबल बढ़ाता है।
"सच" के विषय पर आपकी रचना अच्छी लगी।हार्दिक बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।
रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद से लेखन सार्थक हुआ, आदरणीय डा.गोपाल जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
जीतू जी
क्या बात है ? अति सुन्दर रचना i इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं
आदरणीय डा.विजय जी, रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद हेतु आपका आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
रचना को आपने अपना अमूल्य समय दिया, आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शरदिंदु जी. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
आदरणीय शिज्जू जी, आपकी उपस्थिति से रचना धन्य हुई. आपका ह्रदय से आभारी हूँ.
सादर!
आदरणीय विनोद जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ.
सादर!
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