For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत सुंदर है

मीठा है बहुत,

बिलकुल मिश्री की तरह

मिल जाता है, कहीं भी

कभी भी, हर तरफ

खोखलापन लिए, समा जाये इसमें

कोई भी,कितना भी.

सच! ही तो है

असत्य जो है

कितना आसान है

इसे पाना, स्वीकारना

खुश हो लेना

चलायमान तो इतना

कि रुकता ही नहीं

अनेकों राहें, उनमे भी कई राहें

पूर्ण सामयिक ही बन बैठा  है.

और वो देखो !.. सत्य

वहीं खड़ा है, अनंत काल से

न हिलता न डुलता

बस अडिग सा

न कोई भावनायें

न समय के साथ ,चलने का हुनर

बड़ा बे-शर्म है

कैसे रह लेता है..? बिना कपड़ो के

कठोरता , लोहे की तरह

जंग भी न लग पाए

देखो! न कितना विपरीत है, यह

असत्य से

इसे बस हमेशा

साबित ही करते रहो

न मिलनसार

न जाने क्यों..?

बहुत समय लेता है

आ जाता है अचानक, सामनेबहुत ही डरावना

न कोई सूरत, न कोमलता

गहरी,अथाह गहरी जड़ें

कहीं कोई डर नही

सच! में..

आज बहुत बदसूरत है.

       जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

 

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 12, 2014 at 11:19pm

आपके अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीया मीना दीदी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 12, 2014 at 11:18pm

रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद से रचना धन्य हुई , आदरणीय विजय निकोर जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by Meena Pathak on October 12, 2014 at 12:36pm

बहुत सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई 

Comment by vijay nikore on October 12, 2014 at 12:11pm

"सच" हमसे मानसिक शुद्धता माँगता है, और इसके बदले में कितना मनोबल बढ़ाता है।

"सच" के विषय पर आपकी रचना अच्छी लगी।हार्दिक बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 11, 2014 at 8:32am

रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद से लेखन सार्थक हुआ, आदरणीय डा.गोपाल जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 4:59pm

जीतू जी

क्या बात है ? अति सुन्दर रचना i इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 9, 2014 at 11:29pm

आदरणीय डा.विजय जी, रचना पर आपकी उपस्थिति व् आशीर्वाद हेतु आपका आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 9, 2014 at 11:28pm

रचना को आपने अपना अमूल्य समय दिया, आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शरदिंदु जी. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 9, 2014 at 11:26pm

आदरणीय शिज्जू जी, आपकी उपस्थिति से रचना धन्य हुई. आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 9, 2014 at 11:24pm

आदरणीय विनोद जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service