“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन” रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा
“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..! अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा
“ अरे बाबू जी..! कैसी बातें कर रहे है आप..? यह रहा आपकी सेवा का शुल्क” रमेश ने मुस्कुराते हुए एक ५०० रु का नोट बाबूजी को देते हुए कहा
“ हाँ..! भाईसाहब, देखिये न जिन विभागों में बिलकुल काम नही है वहां भी यह सब. खैर..! यह लीजिये ‘सेना दिवस का फ्लेग’ रख लीजिये. मुझे आटे में नमक मिलाना ही अच्छा लगता है” बाबू ने रमेश से नोट लेकर, मुस्कुराते हुए ५० रु का फ्लेग देते हुए कहा
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
सिर्फ बाबू ही नही , लगभग हर तबके में यही सब कुछ मिलेगा. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति से बहुत ख़ुशी मिली आदरणीय हरि शर्मा जी. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
आटे में नमक का रेशो भी एक तरह की भ्रष्टाचारी भाषा ही है. आदरणीया महिमा जी. लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विनय जी
सादर!
रचना आपको पसंद आई, लेखन सार्थक हुआ. आपका हार्दिक आभार आदरणीय विनोद जी
सादर!
आपकी उत्साहवर्धक उपस्थिति बहुत मनोबल देती है आदरणीया राजेश दीदी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
वाह आदरणीय वर्तमान व्यवस्था का आपने सटीक चित्रण किया है..रिश्वत नहीं सेवा शुल्क हो गयी..ये देश आधा तो इस बाबू कोम के हवाले स्वाहा हो चूका है...सुन्दर तंज,,बधाई जनाब जितेन्द्र 'गीत' जी.
आटा , नमक के बारे में पता नहीं था मुझे ..सिर्फ टेबल के निचे से जैसा कुछ सुना था ...बहुत ही सुंदर भ्रस्टाचार का पोल खोलती कथा ..बधाई
बढ़िया प्रस्तुति है जितेंद्रजी , बहुत बहुत बधाई |
आपकी बधाई सर आँखों पर आदरणीय डा.विजय जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति का ह्रदय से आभार. आप सही कह रहे है यह एक प्रकार की दीमक ही है किन्तु सरकारी दफ्तरों में १५ दिन की अवधि १५० दिन की हो जाए यह भी मामूली सी बात है. कभी-कभी तो आवेदन ही गुम हो जाते है, किसी भी सरकारी काम को अंजाम तक पहुचाना हो तो वहां का स्टाफ ही प्रथम पायदान होता है. अधिकारी वर्ग तो महज चिड़िया बनाने का करता है वो भी आपका कागज सही समय पर उनके सामने रख दिया गया हो. वरना उनके हश्ताक्षर इश्वर की कलम से कम नहीं.
सादर!
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