जी उठा मन” - गीतिका
जी उठा मन आज फिर से रात चंदा देखकर |
थक गई थी प्रीत जग की रीत भाषा देखकर |
इक किरण शीतल सरल सी जब बढ़ी मेरी तरफ ,
झनझनाते तार मन उज्वल हुआ सा देखकर |
छू लिया फिर शीश मेरा संग बैठी देर तक ,
खूब बातें कर रही थी मुस्कुराता देखकर |
प्यार से बोली किरण फिर संग तुम मेरे चलो ,
राह रोशन कर रही थी साथ भाया देखकर |
चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
गीतिका की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार मदन मोहन सक्सेना जी सादर !!
चांदनी का चीर पहने जब दिशाएँ सज गईं,
काँपता तम थरथराता था तमाशा देखकर |
मृत्यु से सिंगार अंतिम थी घडी जिस पल यहाँ,
सत्य जाना जिंदगी का तम मरण का देखकर |
सुन्दर सरल
आ.मोहिन्दर कुमार जी
आपकी सरल सराहना से रचना को बल मिला हार्दिक धन्यवाद सादर नमन !
आदरणीय छाया जी,
मनभावन रचना के लिये बधाई. सुन्दर सरल शब्दोँ मेँ मन की बात कहना कोई आसान काम नहीँ है.
डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,
आपको रचना मोहक और मनोरम लगी इसके लिए अतिशय आभार
यह रचना नीचे दी गई विधा के अनुसार लिखी गई है आपका ध्यान चाहूंगी सादर -
गीतिका के सम्बन्ध में :-------------------------गीतिका क्या है ?``````````````*(1) गीतिका ग़ज़ल जैसी अवश्य है किन्तु यह अनिवार्यत: ग़ज़ल ही नहीं है ( 2) हर गज़ल गीतिका है किन्तु हर गीतिका गज़ल नही है l (3) मेरा अभिमत है कि गज़ल उर्दू की काव्य-विधा है जो निर्धारित उर्दू कविता के नियमों से संचालित होती है l हिन्दी में गीतिका उर्दू की गज़ल जैसी लगती अवश्य है किन्तु इसे गज़ल कहना उचित नहीं है l इसके शिल्प में पर्याप्त लचीलापन है !(4) गीतिका गज़ल की मौसेरी बहन है और कुछ मनचली भी है अर्थात उर्दू के नियम कायदों से अनिवार्यतः बंधी नही है l( 5) गीतिका पुराना गीतिका या हरिगीतिका छंद भी नही है .(6) पूर्णत: गेयता,लयात्मकता ,समान मात्रा भार और सुन्दर भावों का मुक्त प्रवाह लिए निर्झरिणी है गीतिका l (7) इसमें कम से कम पाँच युग्म अवश्य हों .पहले युग्म की दोनों पंक्तियाँ समांत पर और बाद के प्रत्येक युग्म की दूसरी पंक्ति का समांत प्रथम युग्म के समान्त जैसा ही होगा जबकि पहली पंक्ति अतुकांत होगी l प्रत्येक युग्म की अभिव्यक्ति स्वतंत्र होगी !( 8) यहाँ पर एक विनम्र निवेदन यह भी है कि जो गज़ल के कठोर नियमों का पालन नही कर पाते ,फिर भी गज़ल जैसी उत्कृष्ट भावप्रवण रचना लिखते हैं , उनकी रचना को गीतिका के रूप में सम्मानित करना हमारा उद्देश्य है l .आज आवश्यकता इस बात की है कि हम हिन्दी साहित्य की इस काव्य-विधा को सराहें और अधिकाधिक प्रोत्साहित करें l*गीतिका ,एक उदाहरण ~०यूँ समर्पित हो जीवन सभी के लिए,जैसे कोई समंदर नदी के लिए !*
देवता से नही कम है तब आदमी,आदमी यदि जिये आदमी के लिए !*
जब डराने लगे कोई अंधी गली,एक दीपक बहुत रोशनी के लिए !*
हर्ष की भावना और उत्कर्ष हो ,भोर कोई उगे हर किसी के लिए !*
एक आदित्य आकर चमकने लगेजाए बन प्रेरणा इक सदी के लिए !________________________ विश्वम्भर शुक्ल
साभार आ. विश्वम्भर शुक्ल जी सादर !
छाया जी
आपकी मोहक एवं मनोरम रचना गजल की पद्धति पर है आप ने इसे गीतिका कैसे माना ! गीतिका में प्रति दो पद पर तुकांत होता है और अंत में लघु गुरु (1 2)आवश्यक होता है यदि (2 12) हो तो अति उत्तम है i बाकी मात्रा, क्रम और लघु योजना का आपने सुन्दर निर्वाह गीतिका के अनुरूप किया है i रचना की रमणीयता असंदिग्ध है i सादर i
आ.लक्ष्मण लडिवाल जी,
आपका आशीष पाकर खुश हूँ
सादर नमन !
आ. योगराज प्रभाकर जी '
सादर प्रणाम !
आपकी प्रतिक्रिया से विह्वल हूँ सादर नमन !
बहन डॉ प्राची सिंह जी दिल से धन्यवाद आपका अपनत्व से भरी प्रतिक्रिया के लिए सादर !
आ. खुर्शीद जी हार्दिक धन्यवाद ! सुंदर प्रतिक्रिया के लिए सादर नमन !
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