रामकिशन अपनी फसल से बहुत ज्यादा प्यार करता था. पौधों को अपने बच्चों के जैसा समझता. खेतों की साफ़-सफाई, हर काम शुरू करने से पहले पूजा-पाठ, यहाँ तक की अपनी भावुकता के कारण नन्हें-नन्हें पौधों पर कीटनाशकों का छिडकाव भी नहीं करता था. उसे यही लगता था कि इन मासूमों पर जहर का इस्तेमाल कैसे करूँ..? किन्तु ख़राब मौसम के कारण जन्मे कीट उसकी फसल को चट कर जाते. अपने हाथ कुछ न लगना और गाँव के लोगों द्वारा उसकी हंसी उड़ाना , एक दिन उसे समझ आ गया. अब रामकिशन अपनी फसलों से आमदनी का भरपूर फायदा ले रहा है..
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपका बहुत -बहुत आभार, आदरणीय सोमेश जी
सादर!
लघुकथा पर आपकी उपस्थिति, मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम है आदरणीय योगराज जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह व् मार्गदर्शन बनाए रखियेगा
सादर!
acchi lghuktha,mrm ko smjhne ke lie mujhe 3 baar pdhna pdha,fir smjha ye bhavukta ke aavrn ke bare m hai ,bdhai
व्यावसायिकता अक्सर भावुकता पर हावी हो ही जाया करती है, वैसे भी घोडा अगर घास से दोस्ती करने लगे तो भूखो ही मरेगा न ? अच्छी लघुकथा है।
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