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पाकर आभास

अपनी ही कुक्षि में

अयाचित  अप्रत्याशित

मेरी खल उपस्थिति का

सह्म गयी माँ !

*        *        *

 

हतप्रभ ! स्तब्ध ! मौन !

आया यह पातक कौन ?

जार-जार माँ रोई

पछताई ,सोयी, खोयी

‘पातकी तू डर

इसी कुक्षि में ही मर

मैं भी मरूं साथ

तेरे सर्वांग समेत

धिक् ! हाय उर्वर खेत’

*        *        *

 

 

पितु हुए सन्न !

क्षद्म अवसन्न

उनका क्या गया

चिंता का आवरण

कर लिया वरण

धूर्त अंतर्मन करता अट्टहास

नहीं उसमे प्रिय की

मोहक सुवास

हँसता वह खल

खल-खल, खल-खल

गर्भहन्ता नराधम निर्लज्ज

बोला – ‘मर या मार

यदि चाहती उद्धार‘

*        *        *

 

बावली माँ पागल

अपने से हारी हुयी

अन्तस मे अंधड़, तूफ़ान

हाहाकार -----

ममता ही दे आज

निज अंडज को मार

नहीं स्वीकार

प्रतिकार  ! प्रतिकार !

*        *        *

 

‘निर्लज्ज, बेहया, कुलटा

वार-कन्या, पुंश्चली, स्वैरिणी

कलंकिनी, धुर व्यभिचारिणी’

क्या-क्या उपमान बनी

स्नेह ममता में सनी

वह मेरी वीरा ---

वत्सला अधीरा

दुर्धर्ष योद्धा

मेरी पयस्विनी

मातः यशस्विनी

जो स्वयं जली मुझको जिलाने को

पद, पदत्राण खाई मुझको खिलाने को  

जिसने सहेजा मुझे जीवन भर,

भर अंक

पर मिटा पाई नहीं मेरा कलंक

*        *        *

 

 

नीच मै व्यभिचारज 

वर्णसंकर, दोगला

रोता मै जार-जार

जारज पुत्र, कौलटेय

मेरा था पाप क्या !

गत जन्म शाप क्या ?

ईश परिताप क्या  ?

मानवी कलाप क्या ?

क्या,  क्या,  क्या ?

 

(अप्रकाशित /मौलिक )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2014 at 11:02am

दादा

आपके विचार  मुझ पर आपका अनुग्रह मात्र है  i  यह अनुग्रह मेरी निधि है i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 4, 2014 at 2:36am
वाह...क्या बात है आदरणीय. आपकी लेखनी के 'विबग्योर' से हम लोग दिन प्रतिदिन परिचित होते जा रहे हैं. न जाने और क्या क्या है आपके तरकश में....!! मज़ा आ गया..
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:34pm

हरि प्रकाश जी

आपने सच कहा दुनिया बहुत बड़ी है  i हम भुनगे मात्र हैं i  यह भाव सबमे हो i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:32pm

महनीया राजेश कुमारी जी

आपका आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:31pm

श्याम् नारायन  वर्मा जी

आपका कृतज्ञ हूँ श्रीमन .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:30pm

लडीवाला जी

प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:29pm

आदरणीय  योगराज जी

आपका हृदय  से आभारी हूँ i  सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:27pm

अनुज

आपका आभार i आदर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 8:02pm

सोमेश जी

आपको जो शब्द कठिन लगा हो बताये अर्थ बताने का प्रयास करूंगा  i कौलटेय का अर्थ है  कुलटा  का पुत्र i सस्नेह i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2014 at 7:59pm

शिज्जू भाई

आपक प्रोत्साहन का शुक्रिया  i

कृपया ध्यान दे...

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