होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 29, 2021 at 6:30am — No Comments
नर्स ने कोविड मरीज को ऑक्सीमीटर से चेक किया I उसका ऑक्सीजन लेवल 85 और पल्स रेट 60 था I पिछले बारह घंटे से वह ऑक्सीजन पर थाI
‘दादा, कोई तकलीफ ?’- नर्स ने पूछा I
‘हाँ, सूखी खाँसी आती है I गला सूखता है I’- मरीज ने दुर्बल स्वर में कहा I
‘खाँसी जाने में अभी महीना भर लगेगा I साँस लेने में तो कोई परेशानी नहीं है?
‘नहीं, ऑक्सीजन लगने से आराम है I’
‘पर दादा, यह मास्क केवल खाना खाने और पानी पीने के समय ही हटाना I मैंने पानी में ओ.आर.एस. मिला दिया है I धीरे-धीरे उसे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 28, 2021 at 4:30pm — 5 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2021 at 11:26am — 3 Comments
मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2020 at 2:55pm — 4 Comments
तू मेरी साँसों का परिमल, मैं तेरा उच्छ्वास I
बन उपवन भौरे गुंजन सब
देते है अवसाद I
तृप्ति मुझे मिल जाती है यदि
थोड़ा मिले प्रसाद I
अनुभव के पन्नों में बिखरा, रागायित इतिहास I
जाने कहाँ तिरोहित हैं सब
मान और सम्मान I
घुल जाता है तेरे सम्मुख
पुरुषोचित अभिमान I
अग्नि-खंड यह बन जाता है, मुग्ध प्रणय का दास I
उल्काओं को धूल बनाने
की है तुममें शक्ति I
वही शक्ति…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2020 at 7:50pm — 3 Comments
टिड्डियाँ
चीन नहीं जायेंगी
वह आयेंगी
तो सिर्फ भारत
क्योंकि वह जानती हैं
कि चीन में
बौद्ध धर्म आडंबर में है
और भारत में
आचरण है, संस्कार है
यहाँ अहिंसा
परम धर्म है
यहाँ आजादी है
अभिव्यक्ति की
भ्रमण की, निवास की
व्यवसाय की. समुदाय की
जो चीन में नहीं है
वे जानती हैं
चीन यदि जायेंगी
तो बच नहीं पाएंगी
आहार पाने की कोशिश में
आहार बन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2020 at 4:59pm — 4 Comments
अधूरा था
मेरा ज्ञान
सर्वभक्षी के बारे में
मै जानता था
केवल अग्नि है सर्व भक्षी
मगर
सब कुछ खाते थे वे
सांप, झींगुर,कीट –पतंग
यहाँ तक कि चमगादड़ भी
असली सर्वभक्षी तो ये थे
इन्हें पता था
प्रकृति लेती है बदला
पर उन्हें भरोसा था
कि वे बदल देंगे
अपने ज्ञान-विज्ञान से
विनाश की दशा और गति
पर जब हुआ
विनाश का तांडव्
फिर कोई न बचा पाया
और न कोइ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2020 at 1:30pm — 2 Comments
जब नहीं था
समय
तब तुम घूमती थी
और मंडराती थी
हमारे इर्द-गिर्द
करती थी परिक्रमा
और मैं देता था झिडक
अब मैं
हूँ घर पर मुसलसल
साथ तुम भी हो
व्यस्तता भी अब नहीं कोई
कितु मेरे पास तुम आती नहीं
परिक्रमा तो दूर की है बात
ढंग से मुसक्याती नहीं
नहीं होता
यकीं इस बदलाव पर
नहीं आ सकतीं
किसी बहकावे में तुम
और फिर अफवाह की भी बात क्या…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 10, 2020 at 1:51pm — 2 Comments
हिन्दी की रीतिमुक्त धारा के शीर्षस्थ कवि थे i उनकी प्रेमिका थी सुजान. जो दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह 'रंगीले' के दरबार में तवायफ थी i इनके मार्मिक प्रेम की अनूठी दास्तान पर आधारित है-उपन्यास 'बिसासी सुजान ' i पेश है उसका एक अंश ----घनानन्द
[48]
जून का महीना I शुक्ल पक्ष की नवमी I दिन का अंतिम प्रहर I सूर्यास्त का समय I यमुना नदी का काली घाट I घाट पर सन्नाटा I चंद्रमा की किरणें यमुना की लहरों से खेलती हुयी I हल्की आनंददायक हवा I आनंद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 10, 2020 at 11:43am — 1 Comment
संस्कृति देश की है प्राचीनतम,
यह कथा गल्प अथवा कहानी नहीं
है ये अविराम थोड़ा लचीली भी है
पर पयस है महज स्वच्छ पानी नहीं
यह पली है सहनशीलता धैर्य में
ऐसी उद्दाम कोइ रवानी नहीं
हैं उदात्त हम तो ग्रहणशील भी
और अध्यात्म की कोई सानी नही
दूर भौतिक चमक से रहे हम सदा
ऐसी धरती कहीं और धानी नही
दे गए पूर्वज जो हमें सौंपकर
वैसी अन्यत्र जग में निशानी नहीं
वन्दे मातरम् I {मौलिक व…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 9, 2020 at 8:30am — 2 Comments
अभी जरा मैं धनुष सजा लूं फिर आता हूँ
विष से थोड़े विशिख बुझा लूं फिर आता हूँ I
सोने की लंका बनती है तो बन जाने दो
रावण का डंका घहराता है घहराने दो
धर्म शास्त्र खंडित होते हैं मत घबराओ
छा रहा यज्ञ का धूम मलिन तो छाने दो
लेकिन हो रहा सतीत्व हरण यदि नारी का
लूटा जाता है सर्वस्व किसी सुकुमारी का
तो अग्निबाण मेरा अणु-बम सा फूटेगा
मैं प्रत्यंचा खींच धनुष की अब आता हूँ I
राक्षस था…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2019 at 8:30pm — 9 Comments
फूलो की
वादियों से गुजरते हुए
तमाम खिली रौनकों के बीच
हठात वह
मन को खींच लेता है
एक अदना सा फूल
जिसके आगे
हो जाते है
आसमान के सितारे फीके
नीरस लगते है
प्रकृति के सारे उपादान
बेचैन मन को
तब निखिल ब्रह्मांड में
यदि कुछ भाता है
तो सिर्फ वही
अदना सा फूल
बन जाता है जब
अपनी सहजता और सादगी में
साधारण सा वह
अपने ही…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 11, 2019 at 2:05pm — 3 Comments
आपने कभी आत्मा की आवाज सुनी है ?’‘- बाबा ने पूछा I
‘कौन आत्मा ? ‘
‘वही जो हर मनुष्य के अंतर में रहती है I ‘
‘बाबा मैं नेता हूँ , मुझे आत्मा-अंतरात्मा से क्या ?
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 4, 2019 at 11:47am — 8 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
-चॉंदी-सोने से दो पल हैं, प्रिय देखॅूं या बात करूं ।
या बांहों में चाँद खिलाकर जगमग सारी रात करूं II
आज असंयम को बहलाऊॅं –‘मेरा पुण्य तुझे मिल जाये ।
जब मैं शांत, अशांत हृदय का पागल झंझावात करूं I।
गजरे का आडंबर तोडूँ , कुंतल शशि -मुख पर छा जाये I
मैं कर से उलझन सुलझाऊॅ, प्रेम -प्रकंपित गात करूं …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
‘सीते ---- ?’
‘कौन --- स्वामी ?’
‘नही मैं अभाग्य हूँ I’
‘ तो मुझसे क्या चाहती हो ?’
‘मैं कुछ चाहती नहीं , मैं तो तुम्हे सावधान करने आयी हूँ I ‘
‘किस बात के लिए ?’
‘तुम्हारा राम से बिछोह होगा I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 19, 2019 at 2:00pm — 6 Comments
‘क्या कहा कालेज की ओर से ट्रिप में जा रही हो I साथ में लडके भी होंगे ?’- माँ ने पूछा I
‘हां होंगे, तो क्या ? आजकल बहुतेरे उपाय हैं I आपकी नाक नहीं कटेगीI ‘
(मौलिक / अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 12, 2019 at 4:00pm — 4 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2019 at 8:41pm — 9 Comments
‘दीदी, आप अपनी लहरों में नाचती हैं I कल-कल करती हैं I इतना आनंदित रहती हैं, कैसे ?’ -पोखर ने नदी से पूछा I
‘अपनी आगे बढ़ने की प्रवृत्ति के कारण’- नदी ने उछलकर कहा I
.
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2019 at 3:00pm — 4 Comments
‘छी: कितने गंदे, कुत्सित और बदबूदार हो तुम I तुम्हें देखकर घिन आती है I’ नदी ने मुंह बनाते हुए नाले से कहा I
‘बुरा न मानना दीदी आजकल तुम्हारी दशा भी मुझसे अच्छी नहीं है I’ नाले ने मुस्कराते हए जवाब दिया I
(मौलिक ?अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2019 at 10:30am — 14 Comments
प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”
“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”
“हां दीदी ?”
“पर क्यों ?”
“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments
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