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जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्द: और सशक्त लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही कम शब्दों में आपने समाज का आइना प्रस्तुत कर दिया ... बहुत बहुत बधाई आदरणीय गोपाल नारायण साहब!
आपकी लघु कथा ने हम सबको, समाज को, आईना दिखा दिया। युवा-व्यव्हार परवरिश पर निर्भर है, और बच्चों पर पड़ रहे बाहर के प्रभाव पर भी। बहुत ही सशक्त रचना। हार्दिक बधाई, आदरणीय डा० गोपाल नारायन जी।
आ० तेजवीर जी , शुक्रिया , मेहरबानी I
आ० शेख उस्मानी साहब , बहुत बहुत धन्यवाद
आभार विजय सर I
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। सम सामयिक एवम वर्तमान में परिवार में बहुओं के आचरण से भरपूर प्रासंगिक लघुकथा।वैसे भी आजकल यह स्पष्ट हो चुका है कि यदि आप ड्राइवर सीट पर नहीं हैं तो जो कुछ चाहिये उसके लिये निवेदन कीजिये, आदेश नहीं।सूक्ष्म शब्दों में बेहतरीन संदेश।
आदाब। घर-घर की कहानी। स्वार्थी हुई मेजबानी और मेहमानी। औपचारिकता व्यावसायिकता के युग की मेहरबानी। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
क्या कहें ? यही एक जीवन-शैली बन गई है , कहीं कहीं। कई तरह की विवशताएँ छिपी हैं इनके पीछे। बधाई , आदरणीय गोपाल नारायण जी , सादर।
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