तू मेरी साँसों का परिमल, मैं तेरा उच्छ्वास I
बन उपवन भौरे गुंजन सब
देते है अवसाद I
तृप्ति मुझे मिल जाती है यदि
थोड़ा मिले प्रसाद I
अनुभव के पन्नों में बिखरा, रागायित इतिहास I
जाने कहाँ तिरोहित हैं सब
मान और सम्मान I
घुल जाता है तेरे सम्मुख
पुरुषोचित अभिमान I
अग्नि-खंड यह बन जाता है, मुग्ध प्रणय का दास I
उल्काओं को धूल बनाने
की है तुममें शक्ति I
वही शक्ति मेरे मानस में
भरती है अनुरक्ति I
तुम मुझमें मैं तुम्हे समर्पित, बहका है उल्लास I
आवेशित विद्युत् तरंग सी
लहरों पर चलती I
मेरी नस-नस के प्रवाह में
पारा सा ढलती I
जीत नही फिर भी क्यों पाया, मैं तेरा विश्वास ?
प्यार कदाचित निर्मम होता
कब तुमने जाना I
संवेदन की नीरसता को
केवल अति माना I
राग घुला हो जब अंतस में, फिर कैसा मधुमास ?
(मौलिक /अप्रकाशित )
Comment
आद0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन
वाह वाह वाह वाह,, बहुत बेहतरीन और उम्दा सृजन हुआ है आदरणीय। बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छा गीत हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
आद0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन
वाह वाह वाह वाह,, बहुत बेहतरीन और उम्दा सृजन हुआ है आदरणीय। बधाई स्वीकार कीजिये
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