For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए

सीता बनना कठिन पर तुम्हे राम चाहिए
बाबुल का घर छोड़
आत्म अनुमति से आई
नर के दृढ भुजपाश
में सदा तृप्ति समाई
अब गंगोदक छोड़ तुम्हे क्यों जाम चाहिये 
मुझमे पाती त्राण
कहाँ विश्वास खो गया ?
उर में बसते प्राण
आज क्यों स्वप्न हो गया ?
वह मादक मनुहार तुम्हे अविराम चाहिए I
पावन मंगल-सूत्र
आज क्या नाग हो गए ?
माथे का सिदूर
कहो कब आग हो गये ?
तुमको कैसा साथ प्रिये अभिराम चाहिए
घर का मधु उद्यान
बन गया कब से कारा ?
मेरा हर उच्छ्वास
बना उत्पीडन सारा I
भरा मुक्ति का राग, अहो घनश्याम चाहिए
रति स्थायी भाव
मुझे शृंगार ज्ञात है I
हां अब भी है याद
सखे वह मदिर रात है I
तुम्हे न वह रसधार, तड़ित उद्दाम चाहिए

(मौलिक/ अप्रकाशित )

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2020 at 6:05pm

अंतर्निहित उत्कट-भावों को समर्थ शब्द तथा सुगढ़ विन्यास मिले हैं.

सादर बधाइयाँ, आदरणीय गोपाल नारायनजी

 

 

अलबत्ता, ’कठिन’ को पचा पाना मेरे लिए वस्तुतः कठिन हो रहा है. मैं शब्दकल के अनुसार इसके ’न’ को मात्र एक मात्रिक लघु न देख कर ’ठिन’ के युग्म के तौर पर ही देखूँगा. यह वाचिकता ’कठिन’ को क+ठिन के रूप में ही प्रस्तुत करती है. 

वैसे जानता हूँ, आप नहीं मानेंगे. यह एक स्वीकृत हो चुकी भूल का बलात निर्वहन है जिसे एक भरा-पूरा वर्ग आंचलिक भाषा की कसौटी पर मान्य परंपरा को हिंदी के कांधों पर भी लादने को लेकर हठी है.  

शुभातिशुभ

Comment by आशीष यादव on August 25, 2020 at 11:27pm

बिल्कुल सच्चे भावों से बनी है यह रचना। एक बेहतरीन गीत है।

Comment by Samar kabeer on August 25, 2020 at 3:44pm

जनाब गोपाल नारायण जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on August 24, 2020 at 8:43pm

परम् आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, सादर प्रणाम ... अद्भुत,अनुपम और अप्रतिम सृजन ... भावों की कल कल करती धारा इस ह्रदय पर अपनी अमिट छाप छोड़ गई। दिल की असीम गहराईयों से आपको हार्दिक बधाई और सादर नमन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service