छंद - दोहा
काव्य रसिक समवेत है ,अद्भुत दिव्य समाज I
माते ! अपनी कच्छपी , ले कर आओ आज II
वीणा के कुछ छेड़ दो , ऐसे मधुमय तार I
सारी पीडाये भुला , स्वप्निल हो संसार II
सपनो में ही प्राप्त है , जग को अब आनंद I
अतः मदिर माते i करो , हम कवियों के छंद II
यदि भावों से गीत से, जग को मिलता त्राण I
रस से सीचेंगे सदा , उनके आकुल प्राण II
झंकृत हो वीणा यहाँ , फैले ऐसा राग I
सभी दिशाओ में भरे, परिमल सा अनुराग II
सरगम से संगीत से, मिलता हमको ज्ञान I
माते ! है तेरी कृपा , हम सबका सम्मान II
जगमग सारे लोक में, है स्वर का अनुनाद I
आज सुलभ सबको हुआ, माँ का दिव्य प्रसाद II
जब तक माँ होता रहे , कविताओं का पाठ I
तब तक अविचल ही रहे , जननी तेरा ठाठ II
माता का प्रस्थान ही, है स्वर का अवसान I
इस अंतर अनुभूति का, हर कवि को है ज्ञान II
अब फिर से होगा वही , सकल जगत व्यवहार I
जननी है तेरी कृपा, का शत-शत आभार II
ऐसे ही फिर हो कभी , आकुल कवि के गान I
हो फिर नव उत्साह से, माता का आह्वान II
कच्छपी -- माँ सरस्वती की वीणा का नाम I
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
राहुल देव जी
बहुत बहुत स्नेह i
दोहे माँ पर हो गए , ऐसे ही स्वयमेव i
किसे ज्ञात था पाएंगे, आनंद राहुल देव ii
डॉ आशुतोष मिश्रा जी
माँ की कृपा से ही हम सब यहाँ है i
आपको दोहे पसंद आये i आपकी महानता है i
सादर i
आदरणीय गोपाल सर ...अद्भुत दोहों से माँ सरस्वती का गुणगान किया है आपने ..सटीक और चुनिन्दा शब्द चार चाँद लगा रहे हैं ,,सादर बधाई और प्रणाम के साथ
आदरणीय सौरभ जी
दोहे का विग्रह मेरा था i प्राण प्रतिष्ठा तो आपने ही की i
अध्वर्यु को प्रणाम i
आदरणीय गोपालजी, आपके सतत प्रयास और आपकी संलग्नता पर आपके प्रति मेरे मन में सादर भाव हैं. आपके दोहों के कथ्य शारदे के प्रति आपके भावोद्गार हैं.
शिल्प और कथ्य पर सम्यक प्रयास हुआ है. आपकी अन्यान्य प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा है.
सादर
अखिलेश श्रीवास्तवा जी
आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक बधाई i
माँ सरस्वती की दोहे के रूप में सुंदर वंदना की हार्दिक बधाई गोपाल भाई। दायें बाजू की खाली जगह पर माँ का सुंदर चित्र होता तो और भी आनंद आता ॥
मित्रानुज गिरिराज जी
तेरा प्यार है तो मुझ क्या कमी है i
सितारों को भी मिल रही रोशनी है i
आभार i
आदरणीय सौरभ जी
यथानिर्देश दोहे के शिल्प को पढ़कर
फिर माँ की प्रेरणा से नए दोहे रचूंगा
और आपसे आशिर्वाद तथा मार्ग दर्शन
प्राप्त करूंगा i सादर i
आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , लाजवाब दोहों की रचना की है आपने , माँ सरस्वती की बन्दना और आव्हान दोहों के रूप में !!! वाह वा पढ के मन प्रसन्न हो गया !!!! आपको कोटिशः बधाई !!!!
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