मौन के शव ?
बोलते चुपचाप
बात करते आप
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
दग्ध पर नहीं होते वो
ध्वंस लेता है फिर आकार
यही होता है प्रकृति में
भावनाओ की विकृति में
सतत क्रम सा बार बार
सभी है सहते उसे
और हाँ कहते उसे
निष्ठुर प्रेम !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
डॉ आशुतोष मिश्र जी
बहुत बहुत आभार i सादर i
आदरनीय सौरभ जी
सादर---- सादर----- सादर-----
आदरणीय गोपाल सर ..अत्यंत गूढ़ भावों को व्यक्त करती गहन और सुंदर रचना के लिए तहे दिल बधाई ...सादर
दो स्टूडेण्ट मिल कर क्या कमाल नहीं कर सकते.. :-)))))))
हम साथ-साथ हैं !
आदरणीय सौरभ जी
चातक को स्वाति बिंदु मिलने पर शायद वह तृप्ति न मिलती हो जितनी आपके आशीर्वाद से मुझे मिली i मुझे आपकी दीक्षा मिलती रहे और मै आपकी कसौटी पर खरा उतरने का प्रयत्न करता रहूँ i एक स्टूडेंट के लिया इससे बढ़कर क्या है ?
सादर i
सावित्री राठौर जी
आपका आभार i
सादर ii
आदरणीय गोपालजी, आपकी इस प्रस्तुति की अनुगूँज देर तक बनी रही.
कार्मिक रूप से स्थावर हो गये एक भौतिक स्वरूप की मनोदशा को मिले शब्द वस्तुतः प्रभावकारी हैं. भारतीय सनातन मान्यताओं के अनुरूप ही प्रतीत हो रहे ध्वंसावशेष से सुगढ़ता और निरंतरता की सकारात्मक अपेक्षा इसके पाठकों को आश्वस्त करती है.
बड़ा अच्छा लगा कि आपकी प्रस्तुत रचना एक गहन एवं गूढ़ प्रतीत होते-से विषय को आवश्यक कथ्यात्मकता के साथ सरलता से साझा कर रही है.
हार्दिक बधाई, आदरणीय
सुन्दर एवं सटीक अभिव्यक्ति ....... बधाई हो !
अनंत जी
आपकी प्रीति और रीति का सादर आभारी हूँ i
आदरणीय घाव करे गंभीर वाली बात कही है आपने बहुत ही गूढ़ भाव लिए शानदार अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आपको
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