For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छंद- द्रुतविलंबित

लक्षण -  12 वर्णों के चार चरणों  वाले इस छंद के प्रत्येक चरण में 1 नगण  2 भगण तथा 1 रगण होता है I

 

111    211     211     212

 

प्रकट  है  तटबंध   प्रवाहिका

नयन गोचर है   सरिता नहीं

इक तना लघु था  सहसा  तना

न चरता पशु भी इक पास में I

 

सरित का कुछ गान हुआ नहीं

पवन का कुछ भान हुआ नहीं

विरल जीवन मात्र पिपीलिका

सघन  है  वन  नीरव देश भी I

 

उस तने पर है  सब  जीव  जो

मगन  होकर  वे  सब  पी  रहे

सुरस जो बहता  रिसता  वहां

तनिक भी उनको भय है नहीं I

 

जगत में हम भी सब लींन  यो

विकट पाश  लिए यम है खड़ा

पर  किसे  उसकी परवाह  है

हम धरा पर है  जड़  जीव  से I  

 

  (मौलिक व अप्रकाशित )

 

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 11:32am

आदरणीया

द्रुत बिलम्बित  के अतुकांत होने की कोई अनिवार्यता नहीं है i मैंने छंदोत्सव में भाग लेने हेतु शीघ्रता में लिखा i दुर्विपाक से मेरी  त्रुटि एवं अज्ञानता के कारण रचना  प्रतिभाग भी नहीं ले पाई i भविष्य  में कभी तुकांत पर भी माँ की  कृपा  चाहूँगा i बस आप  मित्रो  का प्रोत्साहन मिलता रहे i  सादर i

Comment by वेदिका on December 1, 2013 at 8:17am

रचना सरस है और नवीन सीखने को प्रेरित करती हुयी है| आपको हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ| आदरणीय कुछ प्रश्न है मन मे, छंद द्रुतविलंबित मे अन्य छंदों की भांति तुकांतता नही होती क्या? छंद द्रुतविलंबित पर प्रकाश डालने की कृपा करें! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:17pm

राजेश म्रदु जी

आपको यीट्स याद आये

यह तो अद्भुत है

मै तो कहूँगा आपका स्नेह है i

बहुत बहुत  आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:14pm

अनुपमा जी

आपकी टीप से उत्साह मिला है  i

धन्यवाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:12pm

कुन्ती मुकर्जी

मान्या, आपकी सराहना का धन्यवाद i

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:18pm

बहुत सुंदर रचना.

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:12pm

बेहद सुंदर भावों से ओतप्रोत , सुंदर शिल्प और कथ्य भी बड़ा ही प्रभाव पूर्ण बन पड़ा है , आ0 गोपाल नारायण जी बहुत बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:38pm

प्रस्तुति अच्छी है किन्तु यदि चार पदों में तुकांत के नियमों का पालन हो जाता तो रचना सरस हो जाती

दूसरी ओर छंद के चारों पदों में प्रवाह एक जैसा न जाने क्यूँ नहीं लग रहा

हो सकता है कारण वही हो की इसमें तुकांत की बाध्यता नहीं रखी गयी है जैसा की संस्कृत के छंदों में होता है

किन्तु इस छंदमयी रचना कर्म को सादर प्रणाम

जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 5:23pm

आदरणीय बडे भाई गोपाल जी , छंद का मुझे ग्यान नही है , पर पढ कर बहुत अच्छा लगा !!! लाजवाब रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:22pm

अति सुंदर प्रस्‍तुति, किंतु श्रद्धेय कुछ अधिक क्लिष्‍ट नहीं हो गया । खैरे अनायास यीट्स याद आ गए, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service