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होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर  जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर  जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा  है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है I कुँवर जी ने अपने बेटे श्री नितिन देवेश से संपर्क किया, जो एक बैंकर है I उसके कुछ डॉक्टर्स से सपर्क थे I बेटे ने मुझे लगभग सायं छह बजे बताया कि इंटीग्रल हॉस्पिटल में भर्ती करने की कोशिश चल रही है I पर यह कोशिश कामयाब नहीं हुयी I प्रयास बराबर हो रहा था I सायं आठ बजे सूचना मिली कि लोकबन्धु हॉस्पिटल, आशियाना से एम्बुलेंस मुझे लेने आयेगी I इस बीच सी. एम. ओ. की टीम  ने घर आकर शेष तीन सदस्यों (पुत्र, पत्नी और बहू) के सैंपल लिए I बेटा सक्रिय तो था पर मुझे वह स्वस्थ नहीं दिख रहा था I

मैंने सब कुछ भगवान् की इच्छा पर छोड़ दिया I एम्बुलेंस का इन्तजार लंबा होता गया I मेरा गला सूख रहा था I साँस में हल्की सी दिक्कत थी I मैं सो गया या अवचेतन में चला गया I रात लगभग पौने 11 बजे बेटे ने जगाया I एम्बुलेंस आ चुकी थी I मैं अपना आवश्यक सामान लेकर सीट पर जाकर लेट गया I स्ट्रेचर बीच में पड़ा था I ड्राईवर ने कहा, आप सीट से लुढक सकते हैं, बेहतर हो स्ट्रेचर पर लेट जाएँ I मेरे मन ने कहा, अभी तो नहीं लेटूंगा I समय आयेगा तो तुम्हीं लोग लिटाओगे I ड्राईवर ने घरवालों से भी अपील की, कोई यदि मरीज के साथ चलना चाहे I बेटा असमंजस में था I उस पर कई दायित्व भी थे और पॉजिटिव से दूर रहना भी हर हाल में उचित था I मैं खुद भी नहीं चाहता था कि मेरे साथ कोई चले I मुझे बेटे ने बताया कि मामा और नितिन हॉस्पिटल में मुझे मिलेंगे I मेरे मन में तुरंत एक सुखद अहसास पैदा हुआ I  

एम्बुलेंस जब लोकबन्धु हॉस्पिटल के गेट पर पहुंची, तारीख बदल चुकी थी I मैं जब नीचे उतरा मुझे अपनी दाहिनी ओर कुँवर जी और नितिन दिखाई दिए जो मेरा हौसला बढ़ा रहे थे I मैंने शायद उन्हें हाथ हिलाकर उनका स्नेह स्वीकार भी किया I आधी रात को जब ऐसे आत्मीय निकट हों और हमारे लिए जाग रहे हों, दुआ कर रहे हों तो शायद ईश्वर भी धर्मसंकट में फँसता है I नितिन ने वार्ड=बॉय को हॉस्पिटल प्रभारी का हवाला देकर बताया कि मरीज उन्ही के सौजन्य से आया है I मेरा सामान वार्ड=बॉय ने सँभाल लिया था I मैं दुआ की सजीवनी लेकर हॉस्पिटल में प्रविष्ट हुआ I

 नीचे मेरे हाथ की नस से ब्लड-सैंपल लिया गया I यह कार्य मेरे मामले में हमें    शा कठिन होता है क्योंकि मेरे हाथों में नीली नस बड़ी मुश्किल से मिलती है I नर्स बड़ी देर तक अपने औजारों से लड़ती रही और किसी प्रकार अपने मकसद में कामयाब हो पाई I मेरे चेस्ट का एक्सरे भी यहींउसी दौरान हुआ I अब हमें ऊपर दूसरी मंजिल पर जाना था. पर वे लोग किसी अन्य मरीज की प्रतीक्षा में थे I मुझे खड़ा रहने में दिक्कत थी, मैं मजबूरन वहीं फर्श पर बैठ गया I कुछ देर में एक दुबली सी लड़की मरीज के रूप में आयी I उसके साथ भी वह सब औपचारिकतायें हुईं और अंततः हम स्लोप के सहारे दूसरी मंजिल की ओर बढ़े I  

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30 मार्च, 2021 से पहले मैंने जुकाम-बुखार का अनुभव किया था और एहितात बरतते हुए रोक्सिड-150 के साथ कुछ सामान्य दवाएं भी लीं I रात को डॉ. सौरभ (सीतापुर रोड योजना कालोनी. राम-राम बैंक) को दिखाकर अपनी दवाएं जारी रखीं I तीस मार्च को पूरा दिन भरपूर वाटर इनटेक के बावजूद मेरा मुख सूखता रहा I मैंने बेटे को इस डि-हाइड्रेशन के बारे में बताया तो उसने प्रतिक्रिया स्वरुप एक अजीबोगरीब सवाल मेरी तरफ उछाल दिया –‘आप कैसे कह सकते हैं कि आपको डि-हाइड्रेशन है ?’

 इस उत्तर ने मुझे लाजवाब कर दिया I मुझे लगा मेरे जीवन भर का अनुभव इन बच्चों के सामने केवल पानी ही माँग सकता है I पर मुझे बेचैनी अधिक थी, इसलिए मैंने फिर कहा- ‘यहाँ  तिराहे पर डॉ पंवार हैं , उनको हाल बताओ और अगर हो सके तो ग्लूकोस ही चढ़वा दो I’

 इस बार बेटे ने प्रतिप्रश्न नहीं किया और वह डॉ. पंवार के पास चला गया I डॉ. पंवार के स्थान पर उनके लड़के से भेंट हुयी I वह एक नया डॉक्टर था I उसने ग्लूकोज़ न चढाने के कई बहाने किये और मुझे देखने की इच्छा जाहिर की I मैं किसी तरह उसके पास पहुंचा I उसने डॉक्टर सौरभ के नुस्खे का मजाक उड़ाया और मेरा माथा देखकर घोषित कर दिया कि मुझे डि-हाइड्रेशन है ही नहीं I मैं फिर अपने बिस्तर पर आ गया I शाम को बेटे को अपनी माँ की लेने डॉ. सौरभ के पास जाना था I उसने जबरन  मुझे भी अपने साथ ले लिया I अब मेरी साँस भी प्रभावित होने लगी थी I डॉ. सौरभ की क्लीनिक पर मैं खड़ा नहीं हो पा रहा था I मेरी हालत देखकर डॉ. साहब उठकर बाहर आये I उन्होंने मुझे बेंच पर लिटाया और थोड़ा आराम मिलने पर मेरे बेटे से कहा, अंकल को फ़ौरन विवेकानन्द पॉली क्लीनिक में भर्ती कराओ I वहीं इनकी कायदे से केयर हो पायेगी I’

 मेरा छोटा बेटा  अमित सौम्य (रिशू)उसी मुहल्ले में रहता है I बड़े बेटे ने उससे फोन पर बात की I इत्तेफाक से वह घर पर ही था इसलिए गाडी लेकर तुरंत ही आ गया I हम पहले घर आये फिर आवश्यक सामान लेकर विवेकानन्द पॉली  क्लीनिक पहुँचे I यहाँ एडमीशन मुश्किल था I बहुत से लोगों को मना कर दिया गया, पर दैवयोग से मुझे माइल्ड केस समझकर भर्ती कर लिया गया I यहाँ इंजेक्शन भी लगा. ग्लुकोज़ भी चढ़ा I सुबह तक आराम मिल गया I पर अब ब्लड-टेस्ट शृंखला शुरू हुयी I एक टेस्ट और हुआ जिसका सैंपल नाक में काँच की नली धँसा कर और सलाइवा लेकर किया गया I जाहिर तौर पर यह कोविड टेस्ट था I आज बहुत सारे लोग मुझसे मिलने हॉस्पिटल आये I मेरे पूर्व पड़ोसी गौतम जी, मेरी बेटी के देवर माधव जी. परिवार के सभी लोग और विशेष रूप से भतीजे नितिन के साथ मेरे बच्चों के मामा श्री कुँवर जी I मैं सामान्य था पर रात को जाड़ा देकर फीवर आ गया I निदान एक और इंजेक्शन लगाया गया I सुबह तक उससे आराम मिल गया I अगले दिन अपराह्न तक कोविड को छोड़कर अन्य सभी रिपोर्ट भी नार्मल आ गयी I मन प्रसन्न था कि शीघ्र ही छुट्टी मिल जायेगी I

 उस समय मैं बेड पर अकेले था. जब किसी वार्ड-बॉय ने आकर कहा, ‘आपको आइसोलेट किया जाएगा I’

 मैं पलक झपकते ही समझ गया कि मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी है और अब मुझे सघर्ष करना होगा I  कुछ देर में श्रीमती जी भी कहीं से घूमती हुयी आईं और धीरे से बोलीं – ‘और करवा लो घर में काव्य-गोष्ठी?’

’हे भगवान’- मैंने सोचा –‘इन औरतों ओ कब यह अक्ल आयेगी कि किस समय जब्त रखना कितना अधिक उचित होता है ?’

 कुछ देर में एक आर्क के रूप में दोनों बेटे और दामाद जी भी मुख लटकाए प्रकट हुए I सभी के चेहरे पर एक ही प्रश्न –‘होम-क्वारंटाइन या हॉस्पिटल ?’

मैंने हॉस्पिटल के लिए स्वीकृति दे दी I पर इस कार्य में कुछ समय लगना था I अगली सुबह तक इन्तजार करना था I हॉस्पिटल ने मुझे आइसोलेट कर दिया I अब मैं जहाँ  था, वहाँ बस मैं ही था I न नर्स न स्टाफ I बड़ा बेटा वापस आने की बात कहकर लगभग बारह बजे मुझसे समय लेकर घर चला गया I पर शायद अधिक थके होने के कारण रात में लौट नहीं पाया I मैं भूखा-सूखा वहीं पड़ा रहा I

बड़ा बेटा सुबह जल्दी आ गया I मैं अपने को बेहतर महसूस कर रहा था I मैंने भर्ती होने से मना कर दिया और बेटे से कहा, मुझे घर ले चलो I निदान बेटे ने सभी औपचारिकताये पूरी कीं और दस बजे तक हम घर आ गये I

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दूसरी मंजिल की गैलरी में एक छोटा सा काउंटर था I वहाँ एक सामान्य कद-काठी के डॉ. साहब सिविल कपड़ों में उपलब्ध थे I उस समय उन्होंने लबादा नहीं ओढ़ रखा था I उन्होंने वार्ड-बॉय से पूछा कि बेड किस वार्ड में खाली है I एक बेड वार्ड चार में और एक बेड वार्ड पांच में खाली था I डॉ. ने हमें     एक लिफाफा दिया I उसमें  कुछ दवायें  थीं I हर स्ट्रिप से एक दवा खानी थी I फिर उन्होंने हमें     इस निर्देश के साथ भेज दिया कि इच्छानुसार किसी भी बेड पर शिफ्ट हो जाएँ I मेरी किस्मत में बार्ड चार का बेड आया I कुछ ही देर में ऑक्सीजन लगा दी गयी I साँस में राहत मिली I रिकार्ड के अनुसार मैं 4 अप्रैल 2012 को 12.02 पर एडमिट हुआ I

बिस्तर पर आकर नीद आने तक अपने बारे में सोचने का कुछ वक्त था I कोरोना से जंग आसान तो नहीं I संभव है यही से विदा हो जाऊँ I मन ने कहा- ‘भाड़ में जाए कुछ नहीं सोचना I संसार ऐसे ही चलता है I परिवार में बच्चों को अपने हिस्से का घरबार मिल ही चुका है I सब कमा खा रहे है I मोटे तौर पर जिसे जो देना था वह भी हो चुका है I बाकी श्रीमती जी देख ही लेंगी I अवचेतना. नीम बेहोशी के अनुभव से मैं यह अनुमान लगा पाया कि कष्ट तभी तक है, जब तक शरीर है I शरीर नहीं कष्ट नहीं I इस हिसाब से मृत्यु चिर-विश्राम की अवस्था है और इस उम्र में इससे बेवजह भागना मूर्खता है I सच्चाई क्या है यह तो ईश्वर ही जानें I मुझे सतोष था कि मैंने जीवन में अपने पारिवारिक दायित्व पूरे कर लिए हैं I

मेरे विचारों ने करवट बदली I साहित्य के जानिब मेरे बहुत से काम अधूरे थे I संतोष यह भी था कि जायसी और सुजान पर आधारित उपन्यास कभी बासी नहीं होंगे और ‘मेघदूत’ का अनुवाद भी कुछ दिन टिकेगा I बाकी का अधूरा रहना ही यदि नियति है तो मैं क्या कर सकता हूँ I जैसी हरि-इच्छा अचानक मुझे मुझे दो साये हिलते नजर आये I उनके चेहरे पर मधुरता थी I वे हाथ उठाकर मेरा पथ प्रशस्त कर रहे थे I अरे यह तो कुँवर जी और नितिन हैं I इसी खब्त में जाने कब मैं सो गया I

अगली सुबह नींद जल्द ही खुल गयी I बहुतेरे लोग खाँस रहे थे I कुछ कराह रहे थे I कुछ रो भी रहे थे I कुछ बेसुध थे I अचानक एक बेड को करटेन से घेर दिया गया I मुझे लगा यह केस अधिक सीरियस होगा I बाद में पता चला I मरीज भगवान को प्यारा हो गया था I इतने बड़े हॉस्पिटल में बॉडी अलग रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी I जब तक मृतक के घर से लोग नहीं आ गए, बॉडी पर्दे की ओट से बाहर झाँकती रही और हमें मुँह चिढ़ाती रही I बॉडी उठने के बाद मैंने उस भयानक कमजोरी में किसी प्रकार दैनिक क्रिया की  I पौने नो बजे वार्ड में घोषणा हुई – ‘सब लोग अपना नाश्ता काउंटर पर जाकर ले लें I’ यह काम मरीजों के लिए कठिन था I गनीमत यह थी कि गंभीर मरीजों को खाने की इच्छा ही नहीं होती थी I मेरी भी यही स्थिति थी I उस दिन बहुत सी काल आईं I पर मेरा शरीर और मन मोबाईल उठाने के लिए तैयार ही नहीं   हुआ I मैंने घर की काल जरूर उठाई और सी.एम.ओ कार्यालय से वांछित रिपोर्ट की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, पर परिवारजनों की रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी थी I इसके बाद मैंने कुँवर जी से बात कर परिवार के संक्रमित होने का संदेह व्यक्त किया I कुँवर जी ने मुझे अपने पर फोकस करने को कहा और आश्वासन दिया कि घर को वह मानीटर कर लेंगे I कुँवर जी ने यह भी कहा कि हॉस्पिटल में दवा या इलाज की कोई समस्या हो तो मैं सीधे उनसे या फिर नितिन से बात करूँI ये लोग आवश्कतानुसार डॉक्टर्स से संपर्क करने में समर्थ थे I इसकी पुष्टि भी बाद में हुयी जब श्री अंकित यादव वार्ड-बॉय और डॉ. राकेश बाजपेयी जी ने मेरे बेड पर आकर अपना परिचय देते हुए मेरा हाल लिया I निस्संदेह इन दोनों महानुभवों ने मेरा पर्याप्त ख्याल रखा I ये सब लबादे में रहते थे और इस दुर्भाग्य से मैं इन उपकर्ताओं का चेहरा नहीं देख पाया I पर मन से मैं इनका कृतज्ञ हूँ I

मुझे कमजोरी लग रही थी I मैंने मोबाईल स्विच ऑफ कर दिया और लेट गया I ऑक्सीजन अपना काम कर रही थी I मैं सोया या नीम बेहोश हुआ, कहना कठिन है I जब जागा तो रात के नौ बजे थे I लगभग एक घंटे बाद डॉ. साहब का राउंड था I उन्होंने सबके हाल लिए और आवश्यकतानुसार दवाएं निर्दिष्ट कीं I उनके जाने के बाद मुझे उस दवा की याद आयी जो भर्ती के समय मुझे दी गयी ती I भोजन के नाम पर कुछ भी पेट में न था I अंगरेजी दवा वैसे भी मुझे ज्यादा सूट नहीं करती I प्रायशः मल सुखा देती है I मैं दुविधा में फँसा हुआ था I मन कहता था दवा तो जरूरी है I तन कहता था रियेक्ट कर गयी तो I अंततः मैंने बीच का रास्ता निकाला और कुछ बिस्कुट खाकर मैं निर्दिष्ट सभी दवाएं निगल गया I  

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     ऑक्सीजन पर रहते दो दिन बीत चुके थे I ऑक्सीजन लेवल 91-94 के बीछ झूल रहा था I पल्स रेट 70 के आस-पास I गला सूखता था I ऑक्सीजन बराबर लगी थी I पर मैंने अपने को पहले से बेहतर अनुभव किया I इस दौरान मैंने कुछ बाते नोटिस कीं I वार्ड में परिचारक केवल जरूरत भर आते थे I कोई मरीज किसी को देखकर बुलाता तो वे कभी सुनते, कभी न सुनते या फिर ‘अभी आया’ कह कर न लौटने के लिए चले जाते थे I किसी मरीज के पास कोई इमरजेंसी नंबर नहीं था I अगर किसी को तात्कालिक कष्ट हो तो वह किसी भी सहायता की तत्काल दरकार नहीं कर सकता था I उसे किसी परिचारक की हमेशा प्रतीक्षा रहती कि कब कोई आये और वह शायद उनकी फ़रियाद सुन ले I मैं इसमें परिचारकों को भी दोष नहीं देता आखिर वे भी मानव है और जितना कर रहे हैं,  वह किसी प्रकार कम नहीं है, पर एक इमरजेंसी नं. मरीज को मिलना समय की आवश्यकता है I कालांतर में जब मेरा वार्ड बदला गया तब वहाँ दीवाल पर मुझे इमरजेंसी नं. दिखा और जब एक मरीज की हालत बिगड़ी तो मैंने उस नं. को बहुतेरा आजमाया I पहले तो –दिस नं. डज नॉट एक्सिस्ट I’ सुनाई दिय, फिर कई बार प्रयास करने पर एक नाम उभरा – रत्ना शाह I मेरी तमाम कोशिश के बाद भी वह नं. कभी उठा नहीं I

दूसरी बात बड़ी ही दुखदायी थी I टॉयलेट में सुबह तो पानी रहता, पर दोपहर से शाम तक या कभी-कभी रात में पानी की बूँद न मिलती I कई मरीजों ने शिकायतें भी की, पर सब कुछ बधिर कानों में जाता रहा I ऐसे कन्टेजियस रोग में यह एक बड़ी अव्यवस्था थी I लोग पीने का पानी बोतल में भरकर टायलेट जाने को बाध्य थे I वे कैसे अपने को सैनेटाइज करते होंगे, भगवान ही जाने I एक बार मैंने हॉस्पिटल से सैनेटाइजर माँग लिया I पैरा-मेडिकल स्टाफ ने मुझे घूरकर देखा और कहा –‘आप तो खुद ही इन्फेक्टेड हो, सैनेटाइजर से आपका क्या भला होगा ?’

अब तक घर से ऐसी कोई सूचना नहीं आयी कि बाकी सब लोग निरापद और निगेटिव हैं I निदान मैंने कुँवर जी से फिर संपर्क किया I  पता चला कि सीएमओ कार्यालय जो सैंपल ले गया था, उसकी रिपोर्ट सर्वर खराब हो जाने से अब तक नहीं आयी I बेटे से बात की तो वह झल्ला पड़ा, ‘आप अपनी देखो I यहाँ कोई रिपोर्ट नहीं आयी है I हम और मम्मी फिर से टेस्ट कराने जा रहे है I’

‘और बहू----?’- मैंने पूछा I

‘उनका कल कराएंगे I’

‘आज क्यों नहीं ?’

‘सब एक साथ कैसे जा सकते हैं ?’ 

 बेटे ने फोन काट दिया I मेरा दिमाग सनसनाने लगा I एक तो कल कभी आता नहीं I दूसरा कोविड प्रोटोकॉल के हिसाब से सबका एक साथ टेस्ट होना आवश्यक है I यह सब जानते हुए भी मैं कर ही क्या सकता था I मन मसोस कर रह गया I मन में एक फाँस गड़ी रही कि बहू का टेस्ट नहीं हुआ, जो आगे दुखदायी हो सकता है I मैं यह सोच ही रहा थ कि वार्ड-बॉय श्री अंकित यादव आया और उसने मुझे घर का खाना .फल-फूल, बिस्कुट आदि उपलब्ध कराये I यह कुँवर जी की प्रेरणा से नितिन की ससुराल से आया था, क्योंक यही लोग हॉस्पिटल से कुछ करीब थे I सामान में काढा और दो तरह का नमक भी था I इस समय खीरा-ककड़ी और लहसुनिया नमक मुझे अमृत सा लगा I ब्रेड-बिस्कुट आदि से मैं उकता चुका था I

 मेरी दाईं ओर के बेड पर एक वृद्ध और थे I जर्जर और श्लथ I उन्होंने मेरा मोबाइल माँगा I मेरा मन झिझका पर मैं मना न कर सका I  उन्होंने किसी से बात की और मुझे मोबा. वापस करते हए कहा-‘ ज़रा बात कर लीजये I’

‘किससे ?’- मैंने हैरान होकर कहा I

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 ‘अंकल ---‘- मोबा. से आवाज आई –‘मैं आपकी बगल में मौजूद मरीज का दामाद बोल रह हूँ I  वे मेरे ससुर है I  वे अपने मोबा. पर अक्सर बात नहीं कर पाते I मैं आपका भी उतना ही ख्याल रखूंगा I आप बस ससुर जी के हाल बताते रहिएगा, अगर वह फोन नहीं उठाते तब I मैं अपने चलते उन्हें मरने तो नहीं दूँगा I अक्ल प्लीज I’

 इस दामाद निष्ठा ने मुझे बहुत प्रभावित किया I वैसे भी इन परिस्थितियों में किसी की सहायता करना इंसानियत है I मैंने कहा -‘पर बेटा, मैं भी तुम्हारे ही ससुर की तरह बीमार और कमजोर हूँ I मैं क्या मदद कर पाऊँगा ?’

‘ अंकल मेरे ससुर जी तो बात ही नहीं कर पाते I आप बस उनके हाल बताते रहिये और कभी-कभी बात करवा दीजिये i आपको कोई जरूरत हो तो मुझे जरूर बताइए I’

 मुझे यह लडका काफी ऊर्जावान और कर्मठ लगा I मैंने कहा - ठीक है, जितना कर पाऊँगा, करूँगा  I’

 एक घंटे बाद उसका फोन फिर आया –‘अंकल प्लीज, ससुर जी से मेरी बात करा दीजिये I वे अपना फोन नहीं उठा रहे हैं  I’

 मैंने वृद्ध की ओर देखा i उनके पास फोन ले गया, पर वह अकुलाते रहे, बात नहीं कर पाए I मैंने जवाब दिया - ‘बेटा, वह बात नहीं कर पा रहे हैं I’

‘अभी क्या कर रहे हैं अंकल ?’

‘आँख बंद कर लेते है i ऑक्सीजन लगी है I’  

‘अच्छा खाना खा लिया है या नहीं I’

‘हाँ ,खा लिया है I’ - मैंने मरीज से हामी भरवाने के बाद उत्तर दिया I मेरे इस उत्तर से उस लड़के को थोड़ी राहत मिली –‘थैंक यू अंकल‘ -उसने धीरे से कहा I 

अचानक वार्ड में भूचाल आ गया I एक तो      यह हुआ कि बिन्देश्वरी नाम की महिला डिस्चार्ज होने के बाद फिर से वापस आ गयी थी और उसकी साँसें उखड़ रही थीं I इन्हें मेरे पैरों की तरफ दीवाल से सटी कतार में नया बेड दिया गया I  दूसरी बात यह थी कि एक अन्य महिला के साथ उसका बेटा भी वार्ड में आ गया था और वह तीमारदारी भी कर रहा था I कोविड प्रोटोकॉल  के हिसाब से मरीज के सिवाय किसी अन्य परिजन प्रवेश वहाँ स्वीकार्य नहीं था I मरीज इसका विरोध कर रहे थे I पर वह महिला हॉस्पिटल के ही किसी डॉक्टर की पत्नी थी, इसलिए उसके बेटे को रोक पाना स्टाफ के लिए कठिन था I हम हिन्दुस्तानी इस मजबूरी को समझते हैं I इसलिए इस मामले ने फिर तूल नहीं पकड़ा I

स्टाफ का ध्यान श्रीमती बिन्देश्वरी पर केन्द्रित था I डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ और कई नर्से एक साथ परिचर्या में लगी थीं i उसके बेड को करटेन से घेर दिया गया था, जो मरीज के गंभीर होने का संकेत था I वेंटीलेटर लग जाने पर मरीज को  कुछ आराम अवश्य मिला I स्टाफ स्थिति को सामान्य देखकर वापस चला गया I

आज मुझे हल्की भूख का अनुभव हुआ I मैंने कुँवर जी के सौजन्य से प्राप्त भोजन ग्रहण किया, पर दो रोटी से अधिक न खा सका I लहसुनिया नमक के साथ खीरा, ककड़ी और फल मुझे अच्छे लगे I रात को 11 बजे डॉक्टर साहब ने विजिट किया I ऑक्सीमीटर से मेरा चेक अप हुआ I  अभी प्लस रेट कम थी I मैं वेंटीलेटर पर ही था I नर्स ने एक इंजेक्शन वीवो पर लगाया और एक पेट में I यहाँ भी एक अव्यवस्था देखने को मिली I खून का सैंपल लेने या इंजेक्शन लगाने पर यहाँ स्प्रिट का प्रयोग नहींहोता था I केवल रूई लगाई गयी और कभी -कभी तो रूई भी नहीं मिलती थी I आपत्ति करने पर नर्स ने उदासी से कहा – ‘जरूरत नहीं है I’ मुझे हठात विवेकानन्द पॉली  क्लीनिक की याद आ गयी जहाँ वीवो हटाते समय स्प्रिट का भरपूर उपयोग हुआ था I

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तीसरे दिन आँख खुली I सुबह के चार बजे थे I मैंने वार्ड में निगाह घुमाई I  बहुतेरे लोग जाग रहे थे I  कुछ ऑक्सीजन का मास्क चढाये सो रहे थे I  अचानक मेरी नजर बिन्देश्वरी देवी पर पड़ी I वह आधी बैठी और आधी लेटी थी I उनकी आँख खुली हुयी थी I मेरा मुख सूख रहा था I मैंने बोतल से पानी पिया और मास्क लगाकर लेट गया I मेरे बेड पर जो सीलिंग फेन था, वह अचानक ही बिलकुल धीमा हो गया I मुझे गर्मी लग रही थी I शरीर पसीने से भीग रहा था I पर फिलहाल कोई निदान न था I उन्ही परिस्थितियों में मैं फिर सो गया I

 सुबह साढ़े पांच बजे नर्स ने आकर जगाया–‘आपका नाम?’ मैंने नाम बताया I

‘कैसा लग रहा है ?’

‘ठीक है, गला सूखता है और प्यास नहीं जाती I ‘

‘ठीक है, मैं आपको ओआरएस देती हूँ I इसे पानी में मिलाकर पीना I आपकी फाइल में जो दवा लिखी है, उस हिसाब से आपको इंजेक्शन लगना है I’

‘सिस्टर, देखिये मेरा फैन नहीं चल रहा है I मैं गर्मी से परेशान हूँ I’- मैंने मौक़ा देखकर अपना निवेदन पेश किया I नर्स ने फैन की ओर देखा और झाड़ू लगा रहे स्वीपर को लक्ष्य कर आदेश दिया- ‘राहुल, जरा इस पंखे के देखना I’

 नर्स मुझे इंजेक्शन लगाकर अन्य मरीजों में व्यस्त हो गयी I राहुल पंखे के स्विच तक गया और वहीं से घोषणा की कि रेगुलेटर खराब हो गया है I ठीक नहीं हो सकता I बाद मैंने कुँवर जी को इस परेशानी से अवगत कराया I कुँवर जी ने हँसकर कहा, ’अब इस बारे में डॉक्टर से बात करना शोभनीय नहीं है I कुछ पैसे खर्चकर दूसरा लगवा लो I’ मैंने यह कोशिश भी की पर बात नहीं बनी I

 मैं दैनिक चर्या हेतु वाश-रूम चला गया I मेरी दाढ़ी लगभग दो सप्ताह से नहीं बनी थी, उसमें खुजली होने लगी थी I यहाँ हॉस्पिटल में कुछ हो नहीं  सकता था I चेहरा अजीब सा लग रहा था I मन ने कहा मौजूदा परिस्थिति में अगर यहाँ से निकल पाए तो घर पर ही दाढी बन पायेगी I फिलहाल दैनिक चर्या से निवृत होकर मैं नाश्ते का इंतजार करने लगा I नाश्ता सुबह लगभग साढ़े आठ और नौ बजे के बीच आता था I मैं अपने पास उपलब्ध ब्रेड और पतंजलि के सॉस के साथ ब्रेड लेने की सोच ही रहा था कि मेरी निगाह फिर बिन्देश्वरी देवी पर जा पड़ी I उनकी मुद्रा अब भी वैसी ही थी I मेरा माथा ठनका I तभी नर्स ने आकर उन के सर पर लिहाफ डाल दिया I जाहिर है उनके घर वालों को सूचित कर दिया गया था I लगभग दो घंटे बाद ही उनकी बाडी हटाई जा सकी I मेरी भूख प्यास गायब हो गयी I मगर कब तक ---? पापी पेट कब मानता है I मैंने दो बजे लंच किया I 

 इस बीच कुछ फोन आये I मेरे मित्र मेरे बारे में चिंतित थे I मैंने सबको जवाब दिया I घर पर फोन किया I वहाँ से अब तक कोई संतोषप्रद उत्तर प्राप्त नहीं हुआ I घर वालों की कोविड जाँच रिपोर्ट पर अभी तक स्थिति साफ नहीं थी I इतना जरूर पता चला कि आज बहू का टेस्ट भी कराया गया है I पत्नी ने सांकेतिक तौर पर इतना बताया कि यहाँ भी लोग ज्यादा ठीक नहीं हैं है, बस किसी तरह काम चल रहा है I मैं इस कथन की सन्दर्भ और व्याख्या में उलझ कर रह गया I मुझे कोविड कि रिपोर्ट का इन्तजार था I आकुलता बनी हुयी थी I निदान नहीं था I  

 कुँवर जी का फोन एक दुखद समाचार लेकर आया कि उनके चाचा जी का निधन हो गया I वे मेरे भी ससुर थे I उनकी बहुत सी यादें मन में थी I आयु में वे मुझसे बहुत बड़े थे I अवसान के समय उनकी आयु 84-85 के बीच रही होगी I कुँवर  जी ने यह भी बताया कि अंतिम संस्कार कल होगा और कल वह, नितिन और निशा  (भाभीश्री) हॉस्पिटल आयेंगे I कुँवर जी ने यह भी पूछा कि मुझे किन चीजों की विशेष जरूरत है I मैंने छूटते ही कहा- ‘दाढ़ी बहुत खुजला रही है I‘

‘हाँ यह तो जरूरी है I दाढ़ी न बनने पर चेहरा यूँ भी बीमार-बीमार सा लगता है I कुछ और ---?’

‘खीरा-ककड़ी I नमक के साथ खाने की बड़ी इच्छा है I बिस्कुट से बोर हो चुका हूँ I’

‘हाँ, ज्यादा बिस्कुट मुँह बाँध देता है I ठीक है, यह सब सामान आपको कल शाम को मिलेगा I’

 इसी समय वार्ड में एक नया मरीज लाया गया I मैं मध्य पंक्ति में था I उसे पहली पंक्ति में सबसे बाईं ओर बेड मिला I इसकी उम्र 35 प्लस रही होगी I किसी अमीर परिवार का चिराग था I कष्ट सहने की जरा भी आदत नहीं I हर बात से असंतोष I जब से आया चिल्लाता ही रहा – ‘मैं मर रहा हूँ, यहाँ कोई देखने वाला नहीं ? कैसा हॉस्पिटल है यह? चिल्ला-चिल्लाकर उसने स्टाफ की नाक में दम कर दिया I उसके सामान के आठ झोले एक घंटे में आ गये I बात करने के लिए नया मोबाईल भी I

 उसकी असहिष्णुता का नाटक लगभग दो घंटे तक चला I उसने खीझकर अंततः अपने छोटे भाई को फोन किया कि वह आये और उन्हें ले जाए वरना वे हॉस्पिटल में यूँ ही मर जायेंगे I भाई कुछ ही देर में कार लेकर आ गया और उनका पैक-अप हो गया I उनके आठ झोलों में क्या था. यह रहस्य ही बना रहा I पानी की बोतलों का तो पूरा क्रेट ही था, जो उनके साथ ही चला गया I उनके जाने पर स्टाफ ने और वार्ड ने भी चैन की साँस ली I आज जो खाने=पीने का सामान कुँवर जी के समधियाने से आया, वह जाने कहाँ चला आया I मैं स्वयं काउंटर पर गया I लौटते समय मैं अंत ‘संतोषम् परमं सुखं’ का मंत्र पढ़ता रहा I

 रात को विजिट पर आये डॉक्टर से मैंने पंखा न चलने की शिकायत की I डॉक्टर को बताया गया कि रेगुलेटर काम नहीं  कर रहा I डॉक्टर ने वार्ड पर नजर घुमाई I तीसरी पंक्ति में एक बेड खाली था I उसने उसमें नई चादर बिछवाई I नया तकिया लगवाया और मुझे उस बेड पर शिफ्ट कर दिया I अब डॉक्टर ने मेरा हाल पूछा I श्वास-कष्ट तो था ही मेरा गला भी सूखता था और कुछ एसिडिटी भी I मैंने बताया I डॉक्टर ने कहा, देखिये मैं आपको ओरल दवा तो नहीं दे सकता I आपको इन्जेस्शन दे रहा हूँ, उससे आपको आराम मिल जायेगा I डॉक्टर के निर्देश पर नर्स ने एक इन्जेशन लगाया I इस समय रात के दस बजे थे I इंजेक्शन के प्रभाव से मैं थोड़ी ही देर में सो गया I

[7]

चौथे दिन सुबह पाँच बजे मेरी नीद मोबा. के घनघनाने से टूटी - ‘अंकल पहचाना ?’- उधर से आवाज आयी I मैं समझ तो गया, पर मेरे कुछ कहने से पहले ही वह फिर बोल पड़ा - ‘मैं आपकी बगल में जो मरीज है, उसका दामाद बोल रहा हूँ I’

‘हाँ, बोलो ?’

‘मैं तो ठीक हूँ, पर मेरे ससुर जी फोन नहीं उठा रहे I अब कैसे है वह ? आक्सीजन लगी है कि नहीं ?’

‘बेटा, मेरा बेड चेंज हो गया है, अब वह मेरे बगल में नहीं हैं I’

‘अंकल जी आपका वार्ड बदल गया क्या ?‘

‘नहीं वार्ड तो वही है पर मैं उनसे दूर हो गया हूँ I ‘

‘कोई बात नहीं, आपकी मेहरबानी होगी I कृपया जरा सा झाँककर बताइए कि वे क्या कर रहे हैं ?’

‘चुपचाप लेटे हैं I- मैंने वहीं से मरीज को देखकर कहा I

‘अंकल एक कष्ट दूँगा I कृपया मेरी खातिर उनके बेड तक जाइये और अपने मोबा. से बात करा दीजिये I भगवान की दुआ से आप बेहतर स्थिति में है, प्लीज अंकल !’

 आर्त्त व्यक्ति कर ही क्या सकता है i मेरा जमीर उसका आग्रह न टाल सका I मैं उठकर उसके ससुर के बेड तक गया I यह मरीज सचमुच बेचैन था I अपना सिर कभी दाएँ तो कभी बाएँ घुमाता I मैंने उससे कहा, भाई जी, आपके दामाद का फोन है I’

 मरीज ने जैसे सुना ही नहीं   I कुछ हाँफता सावह बस अपना सिर दाएँ-बाएँ झटकता रहा I मैंने कई बार कोशिश की I मोबाइल तक उसके कान में लगा दिया पर वह बात करने की स्थिति में नहीं थे I मैंने उसके दामाद को सारी स्थिति बताई तो वह अचानक मायूस हो गया I कुछ देर तक ठहर उसने निश्चय भरे स्वर में कहा - ‘लगता है अब बाबू जी को घर ही ले जाना पड़ेगा I’

  उसने मेरे प्रति बहुत-बहुत आभार प्रकट किया और फोन काट दिया I वार्ड में बहुत से लोग जाग रहे थे I उन्होंने मेरी यह गतिविधि अचरज भरी नजरों से देखी I अपने बेड पर आकर मैंने सावधानी बरतते हुए अपने हाथ और मोबा. दोनों को सैनीटाइज किया I सुबह के छः बज चुके थे I मैं नित्य क्रिया में प्रवृत्त हो गया I  

नाश्ता आने से पहले मैंने घर फोन किया I सबसे पहले मैंने रिपोर्ट की बाबत पूछा I श्रीमती जी ने बताया कि सारी रिपोर्ट निगेटिव आई हैं I यह सुनकर मन प्रसन्न हुआ कि चलो हमारे बच्चे तो निरापद है I मेरे वाट्स एप पर कोविड की प्रचलित दवाएं और ‘क्या करें / क्या न करें’ की डिटेल थी, वह मैंने फॉरवर्ड कर दी और मौखिक निर्देश भी दिए I जैसे- सभी लोग नींबू और गर्म पानी लें, फल में संतरा अधिक खायें और रात में गर्म दूध के साथ आधा चम्मच हल्दी जरूर लें I मन में यह शंका भी थी कि आजकल बूढ़े की बात लोग मानते ही कितना है I सब बड़े हो गए हैं I सब अधिक समझदार हैं I पर यह संतोष अवश्य था कि कम से कम सब लोग निगेटिव तो है I हल्की-फुल्की जुकाम-खाँसी घर पर भी ठीक हो जायेगी I

दोपहर लगभग दो बजे मैं लंच लेने गया I काउंटर पर भीड़ थी I इस कारण लंच लेने में कुछ समय लगा I लौट कर बेड पर आते ही मैं भोजन पर टूट पड़ा I इसका मुख्य कारण यह था कि आज मेरे पास न कोई फल था न खीरा-ककड़ी I इसलिए होस्प्तल का यही पैक अमृत था I आलू की ज़रा सी सब्जी I निहायत सूखी I डाल प्लास्टिक की छोटी सी कटोरी में कहने भर को दाल, चार छोटी चपातियाँ और अधिकतम पचास ग्राम चावल I एक बीमार के लिये इतना पर्याप्त था I अचानक मेरी नजर उस अज्ञात दामाद के ससुर के बेड पर गयी I बेड खाली था I शायद उनका दामाद उन्हें लेकर चला गया था, पर कितनी जल्दी यह काम हो गया, आभास तक नहीं हुआ I उस बुजुर्ग का विवर्ण चेहरा मेरा आँखों के सामने घूमने लगा I मन संवेदना से भर गया I इधर मेरी दाढ़ी लगभग दो सप्ताह से नहीं बनी थी, उसमें अब खुजली होने लगी थी I यहाँ हॉस्पिटल में कुछ हो भी नहीं  सकता था I चेहरा अजीब सा लग रहा था I मनुष्य जीवन भर अहंकार और दम्भ का परचम ऊंचा करके चलता है पर एक दिन वह बेबश भी होता है I तब उसके चाहने वाले प्रियजन कोशिश भी करते है, दुआ भी करते हैं, पर अंतिम निर्णय ऊपर वाले के पास ही सुरक्षित रहता है I 

                             [8]

 आज पाँचवा दिन था I मैं काफी बेहतर अनुभव कर रहा था I ऑक्सीजन का प्रयोग कम करने की सलाह दी गयी अर्थात जब साँस फूले तभी लगायें I इस ऑक्सीजन में भी एक विचित्र गंध होती है, पर इससे साँस फूलने में आराम तुरंत मिलता है I मैं कुछ देर तक सामान्य रहा फिर भाग कर काउंटर पर गया और बताया मेरी साँस फूल रही है I बड़ी इन्तजार के बाद सुनवाई हुई I ऑक्सीमीटर के हिसाब से  ऑक्सीजन लेवल 91 और पल्स 65 थी I नर्स ने आकर फिर से ऑक्सीजन लगा दी I मुझे तुरंत आराम मिला I पहले मुझे नींद बहुत आती थी पर अब कम हो गयी थी I हालाँकि जब इंजेक्शन लगता तब मैं जरूर सो जाता I

  एक हट्टे-कट्टे बुजुर्ग जो दिखने में ज़रा भी बूढ़े नहीं  लगते थे, वे आज हॉस्पिटल प्रशासन की ऐसी-तैसी कर रहे थे I हर मनुष्य चाहता है कि सब कुछ उसके मन माफिक हो i जब वह चाहे नर्स आ जाए, जब चाहे डॉक्टर आ जाये I पर हॉस्पिटल के स्टाफ का एक रूटीन था I उसके अनुसार ही नर्स आती थीं, पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर्स भी आते थे I बस एक ही कमी थी कि रात में मरीज क्रिटिकल हो जाए तो स्टाफ को कैसे बुलाया जाए? इसका कोई उपाय नहीं  था I पर हमें यह भी सोचना चाहिए कि मेडिकल स्टाफ कितने दबाव में काम करता है I उसका सामना आए दिन मरीज की मृत्यु से होता है I हॉस्पिटल का हर कर्मचारी जानता है कि वह लोगों के प्राण बचाने का काम कर रहा है I इसलिए वह असावधान नहीं है I पर वह भी मनुष्य है I उसकी भी क्षमताएं और सीमायें है I    

  वह युवा बुजर्ग मिलेटरी के रिटायर्ड कर्नल थे I गोमती नगर से आये थे I उनकी असहिष्णुता उनके आधिकारिक दंभ की उपज थी I ईश्वर की कृपा से वे स्वस्थ हो चुके थे, पर अभी हॉस्पिटल ने उन्हें अवमुक्त नहीं किया था I उन्हें हॉस्पिटल की मानवीय सेवा-भावना नहीं दिखाई दी I आप किसी बारात में जाते हैं तब वहाँ भी आपको तमाम दिक्कतें पेश आती हैं फिर यह तो हॉस्पिटल था I मुझे भी असुविधाएं पेश आयीं, पर वे ऐसी नहीं  थी कि उनके कारण स्टाफ की सेवा-भावना पर कोई प्रश्न चिह्न लगाया जाए I  हर समुदाय में कुछ अच्छे तो कुछ बुरे, कुछ कर्मठ तो कुछ निकम्मे होते ही हैं I एक अच्छा अनुशासन सबसे बेहतर कार्य ले लेता है I मैंने यहाँ के स्टाफ को दौड़-दौड़ कर काम करते देखा है I इस त्रासदी और ऐसी आपाधाप्री में इससे बेहतर और क्या हो सकता है ?

 आज मोबा. पर दोस्तों के हाल लेता रहा I मेरे साहित्यिक मित्रों के भी फोन आये I घर के हाल फिर लिए I घर से जो भी बोलता उसमें मुझे उत्साह न दिखता I मैं सोचता कि मेरी बेहतरी के बावजूद इतनी नीरवता क्यों है? जब सभी निगेटिव हैं, तो इतनी औपचारिकता क्यों –‘ हाँ---- यहाँ सब ठीक है I‘

 मेरे बेटों में से कोई भी एक बार हॉस्पिटल नहीं आया I आता तो फल और खाने का कुछ सामान आ जाता I कभी-कभी क्रोध भी आता कभी मन शंकाओं से भर जाता I इसी उधेड़बुन में शाम हो गयी और कुँवर जी का फोन आया –‘ गोपाल जी, मैं हॉस्पिटल के नीचे हूँ i प्रोटोकॉल के कारण ऊपर आ नहीं सकता I मेरे साथ निशा (पत्नी ) और नितिन भी हैं I हम लोग चाचा जी का सब काम निपटा कर, नहा धोकर आये हैं I कुछ सामान हमने ऊपर भेजा है, मिला कि नहीं ?’

 सामान्यतः हॉस्पिटल में सायं पाँच या छः बजे के बाद घर का भेजा सामान नहीं  लिया जाता, पर नितिन का अपना प्रभाव था, जिससे वह सामान मुझे मिल गया I मैंने जवाब देते हुए कहा- ’हाँ कुँवर जी, मिल गया I’

‘ठीक है, अब आप कल सुबह क्लीन शेव हो जाएँ I इस समय मूछों का झंझट न पालें और अपनी आफ्टर-शेव फोटो मेरे पास जरूर भेजना I’

‘हाँ बिलकुल I ’  

  इसके बाद नितिन ने बात की I मेरी दवाओं और हॉस्पिटल केयर के बारे में पूछा I मुझे डॉ. राकेश का सहयोग प्राप्त था ही I कोई अन्य परेशानी थी नहीं I मैंने कहा- ‘ अभी तो सब ठीक है I श्री अंकित यादव जी भी ध्यान दे रहे हैं I कोई और बात होगी या जरूरत होगी तो फोन करूँगा I’ 

[9]

 दिनांक 09 अप्रैल 2021 की सुबह मैंने अपने को बेहतर पाया I नर्स ने मेरी ऑक्सीजन हटा दी I ऑक्सीमीटर के अनुसार मेर्र ऑक्सीजन लेवल 94 और पल्स 70 के आस-पास थी I आज सुबह मैंने कुँवर जी का भेजा सामान देखा और स्तब्ध रह गया I दाढ़ी बनाने के लिए शेविंग रेज़र तो मेरी अपेक्षा थी ही, पर उन्होंने जिलेट रेज़र के साथ शेविंग जेल और फोम भी भेजा I इसके साथ एक टूथ पेस्ट, हेयर आयल और ओडोमास क्रीम भी उसमें थी I फल में पर्याप्त सेब, अंगूर और संतरे थे I साथ ही मेरी फेवरिट खीरा-ककड़ी और काला नमक I कुछ और भी था जो अब याद नहीं I मैंने सबसे दैनिक चर्या से निवृत होकर अपने को क्लीन शेव किया और वाया वाट्स एप अपनी फोटो कुँवर जी और नितिन को भेजी I फिर घर को और बेटी को भी फॉरवर्ड किया I सभी जगह से उसका रिस्पांस आया I

 हॉस्पिटल का नाश्ता आने से पहले आज मैंने पहली बार भूख का अनुभव किया I कुँवर जी की अनुकंपा थैले में सुरक्षित थी i मैंने उसमें से ककड़ी और खीरे का आनन्द लिया I इसी बीच दूरदर्शन की साहित्यिक साईट ‘ओपन बुक्स ऑन लाइन’ के एडमिन सदस्य आ. शरदिंदु मुकर्जी दादा जो इस साईट के लखनऊ-चैप्टर के संरक्षक भी हैं, उनका वाट्स एप पर मेसेज आया I वे मेरे बारे में चितित थे I मैंने उन्हें अपनी बेहतरी के बारे में मेसेज किया I इसके बाद मेरे साहित्यक मित्र डॉ. अशोक शर्मा और श्री मृगांक श्रीवास्तव का भी फोन आया I मेरी बेहतरी से सभी आश्वस्त हुए I मैंने घर से भी बात की I पर वही स्वर, वही अंदाज, वही फीकापन –‘हाँ सब ठीक हैं I’ मन क्षोभ से भर गया I ये सब निगेटिव होकर भी इतने मायूस हैं I मेरी फ़िक्र कौन करे?

 आज मेरा बेड फिर बदल दिया गया I अब मैं पहली पंक्ति में पहले नं. पर था I यहाँ पंखे की हवा कुछ कम थी पर ऑक्सीजन वाया पाइप-लाइन सुलभ थी I यहाँ एक मानीटर पर ऑक्सीजन लेवल तथा पल्स रेट लगातार दिखता था I दिन भर मैं बिना ऑक्सीजन के रहा I रात को डॉ. ने विजिट किया I उन्होंने मानीटर पर ऑक्सीजन लेवल 92 देखकर फिर से ऑक्सीजन लगा दी I इंजेक्शन यथासमय लग ही रहे थे I  

[10]

 आज सातवाँ दिन था I डॉक्टर साहब ने दोपहर की विजिट में मेरी ऑक्सीजन हटा दी और अन्य मरीजों को देखने लगे I कुछ देर बाद वे फिर वापस आये और बोले- ‘बिना ऑक्सीजन के कैसा लग रहा है?’

‘ठीक लग रहा है I;- मैंने उत्तर दिया I

‘साँस तो नहीं फूल रही ?’

‘नहीं सर, पर खांसी है अभी?’

‘वह तो महीने भर बाद ही जा पायेगी, इस समय मैं कोई वाहियात सिरप रेकमेंड नहीं करूँगा I आपको डिस्चार्ज के समय जो दवा मिलेगी, उससे कवर हो जाएगा I’ 

 मैंने राहुल नामक कर्मचारी से बिसलेरी की दो बोतलें मंगाई  I वह पचास रूपये लेकर चम्पत हो गया I फिर लौट कर न आया I दोपहर को एक गंभीर मरीज मेरे वार्ड में लाया गया I उसे मेरे ठीक सामने दूसरी पंक्ति में बेड दिया गया I यह एक अधेड़ और स्वस्थ शरीर वाली महिला थी i चेहरा सुन्दर पर पीड़ा और अवसाद से भरा I इसकी चिकित्सा में चार-पाँच लोग लगे I मेरी वाली पाइप-लाइन ऑक्सीजन अब उसे लगा दी गयी I आनन-फानन उसे कई इंजेक्शन लगाये गए I शीघ्र ही उसे वेंटिलेटर पर रखा गया I नर्सें दौड़-दौड़ कर काम कर रही थी I सबकी सेवाएं देखती ही बनती थीं I पहली बार किसी मरीज की प्रारंभिक चिकित्सा में एक डॉक्टर को देखा गया I

 वेंटीलेटर कई बार बदले गए I शायद कुछ फंक्शन नहीं कर रहे थे I मैंने मानीटर पर खुद देखा कि मरीज का ऑक्सीजन लेवल 37 था जो मशीन लगने पर 41 तक पहुँचा I स्टाफ ने राहत की साँस ली I सब लोग चले भी गए I पर पाँच मिनट बाद ही फिर एक नर्स आयी I उसने ऑक्सीजन लेवल देखा और दौड़कर फिर सबको बुला लाई I डॉक्टर ने डबल वेंटिलेटर आजमाया I अचानक मशीन कड़कड़ाने लगी I कड़कड़ की आवाज तीन बार हुयी और मरीज ने दम तोड़ दिया I

 डॉक्टर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर यह सब देखता रहा I यह घटना ठीक मेरी आँखों के सामने हुई I उस महिला का मुख हल्का सा खुला था I नर्सों ने तुरत उस बेड को करटेन  से घेर दिया I पर मेरे बेड से वह बॉडी साफ़ दिखती रही I मेरा मन गहरे अवसाद से भर गया I डॉक्टर ने एक पैरा मेडिकल से पूछा-  ‘क्या यह बॉडी यहाँ से हटाकर कहीं रखी जा सकती है ’

‘नहीं सर, यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है I’

‘ठीक है, इसके घरवालों को इन्फॉर्म कर दो और पैक अप की तैयारी करो I’

 यह सुनकर स्टाफ चला गया पर वह डॉक्टर नहीं हिला I लगभग एक घंटे तक जब कोई नहीं लौटा तो डॉक्टर भी चला गया I महिला का खुला मुख अब फ़ैल गया था और विकृत एवं कुछ डरावना भी हो गया था I मैं मुख फेर कर अपने बेड पर पड़ा रहा I बीच-बीच में निगाह उस पर पड़ ही जाती थी I बॉडी यूँ ही पड़ी रही I कई घंटों बाद उसे हटाया जा सका I हॉस्पिटल में अगर ज़िंदा मरीज न हों तो यह स्थिति बर्दश्त कर पाना असंभव हो जाएI किसी प्रकार वह रात भी कटी I मुझे ऑक्सीजन नहीं  लगाना पड़ा I

[11 ]

 आठवें दिन डॉक्टर ने बताया कि कल ग्यारह बजे मुझे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा I मैं मन ही मन प्रसन्न हुआ I पर एक शंका उठी कि मेरा कोविड टेस्ट दुबारा तो हुआ नहीं I डिस्चार्ज से पहले निगेटिव होना आवश्यक है I मुझसे पहले जितने लोग  मेरे सामने डिस्चार्ज हुए उनमे किसी का कोविड टेस्ट दुबारा नहीं हुआ था I बाद में गूगल से पता चला कि कोविद-19 नौ दिन तक ही जीवित रहता है I  दसवें दिन उसका प्रभाव नहीं रहता I ऐसी स्थिति में दुबारा टेस्ट कभी-कभी कन्फ्यूज़न क्रिएट कर देता है जब वायरस के निष्क्रिय रहते भी रिपोर्ट कदाचित पॉजिटिव आ जाती है I इस जानकारी से मन को शांति मिली I  

 मैं डिस्चार्ज के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गया I मैंने घर में भी सबको बता दिया I श्रीमती जी ने अचानक अपने उत्तर से मुझे स्तब्ध कर दिया I उनका कहना था- ‘एक-दो दिन और रह लो, वहाँ आराम है, दवा है, देखरेख है I’

 मेरे लिए इस जुमले का अर्थ बूझ पाना कठिन था I दिमाग में बार-बार यही गूंजता –‘कुछ तो है जो सामान्य नहीं है i’

‘बात क्या है ? तुम रोज कुछ न कुछ पहेली बुझाती हो I इन नौ दिनों में किसी को भी हॉस्पिटल आने का समय नहीं मिला या इच्छा नहीं हुयी I’

‘कुशी जाने को कह रहे थे I पर तबियत ठीक नहीं है और हॉस्पिटल भी यहाँ से कितनी दूर है i उसकी बिलकुल हिम्मत नहीं पड़ी I यहाँ भी बहू को छोड़कर सब बीमार ही तो है i न भूख लगती है और न खाने का मन करता है I बहू किसी प्रकार घर देख रही है I’

‘किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया ?’

‘कुशी डॉक्टर से पूछ कर दवा लाये थे I अब आराम है I’

 मैंने उन्हें सुबह गर्म पानी से नीबू लेने और रात को दूध हल्दी के साथ दालचीनी भी लेने की सलाह दी और ताकीद की सभी लोग यहाँ तक कि बहू भी सेवन करे I श्रीमती ने धीमे से ‘हाँ’ तो की, पर मुझे भरोसा नहीं  था कि इस बात को कोई गंभीरता से लेगा I   

 मैं निरंतर कुँवर जी और नितिन के साथ तो संपर्क में था ही I नितिन की ससुराल से आज खाना भेजा गया था पर दुर्भाग्य से वह मुझे मिल नहीं पाया I शाम तक इन्तजार रहा I आखिर नितिन ने ही हॉस्पिटल से संपर्क कर बताया कि वह सामग्री कहीं और डिलीवर हो गयी I नितिन ने यह भी बताया कि डॉक्टर साहब आज डिस्चार्ज करने के मूड में नहीं हैं I आज और रुकना पड़ेगा I

 अब मुझे पूरा भरोसा था कि अगले दिन तो मझे अवमुक्त कर ही दिया जाएगा I पर नवें दिन मेरा बेड, वार्ड सब बदल दिया गया i अब मैं ICU से निकलकर माइल्ड-पेशेंट, वार्ड नं. पाँच में आ गया I यहाँ का वातावरण बेहतर था I कोई चीख-पुकार नहीं I अधिकांश लोग स्वस्थ थे I कुछ तो मोबा. पर संगीत भी सुन रहे थे I

 आज मुझे वाट्स एप पर लखनऊ की प्रख्यात साहित्यिक साईट ‘सत्यम साहित्य सम्मिलन’ पर पद्मश्री अग्रज श्री योगेश प्रवीण के निधन का दुखद समाचार मिला I उनकी मृत्यु कोरोना संक्रमण से हुयी पर इसमें सबसे दुखद बात यह थी कि पद्मश्री प्राप्त और इनसाइक्लोपीदिया ऑफ़ लखनऊ हिस्ट्री कहे जाने वाले प्रबुद्ध साहित्यकार को इस शहर में एक एम्बुलेंस भी समय से नहीं मिल सकी और वे अकाल काल-कवलित हो गए I प्रवीन जी ने लखनऊ की नवाबी इतिहास पर आधारित और उ०प्र० राज्य कर्मचारी संसथान से पुरस्कृत मेरे कहानी-संग्रह ‘नौ लाख का टूटा हाथी’ पर मेरी बड़ी पीठ थपथपाई थी I इसके बाद मुझे और भी बहुत से साहित्यकारों, कवियों और शायरों के दिवंगत होने के समाचार मिले I मेरा मन कसैला हो गया I हमारे आर्षग्रन्थों में महाप्रलय के सापेक्ष खंड-प्रलय का अधिकधिक जिक्र है, पर ऐसी विश्वव्यापी अदृश्य एवं मायावी त्रासदी का जिक्र तो शायद दुनिया के किसी भी ग्रन्थ में नहीं है I

दोपहर बीत गयी I डिस्चार्ज की कोई सुगबुगाहट नहीं I मैंने नितिन को फोन किया कि अगर एक स्पष्ट तिथि मिल जाये कि कब रिलीव होना है, तो उसके लिए मानसिक रूप से तैयार रह पाना अधिक राहत भरा होगा आज-आज और कल-कल से मुझे और परिजनों सहित सबको भ्रम रहता है I रिशू (छोटा बेटा) कितनी ही बार कह चुका है कब लेने आऊँ?’ नितिन ने हॉस्पिटल से संपर्क कर सही तिथि बताने का आश्वासन दिया I

 अपराह्न तीन बजे एक मेडिकल कर्मी मेरा नाम पुकारता हुआ आया I मुझे लगा कि शायद मेरे रिलीव होने का समय आ गया है I पर वह मेरा कोविड टेस्ट-सैंपल लेकर चला गया I उसके जाने के कुछ देर बाद ही नितिन का फोन आया I उसने पूछा –‘ फूफा जी, क्या आपका सैंपल लिया गया है ?‘

’हाँ‘ – मैंने चकित होकर उत्तर दिया I

‘हाँ, तो फूफा जी अभी आपको रहना पड़ेगा I आपकी रिपोर्ट जब निगेटिव आ जायेगी तभी आपको छोड़ेंगे I’

‘मगर ऐसा तो यहाँ किसी के साथ नहीं हुआ, जो भी मेरे सामने हॉस्पिटल से रिलीव हुए किसी को कोरोना टेस्ट दोबारा नहीं हुआ I’

‘आप स्पेशल केस हैं न फूफा जी, इसलिए I डॉक्टर आप पर विशेष ध्यान रख रहे है I  वे आपको तभी रिलीव करेंगे, जब वे पूरी तरह से संतुष्ट हो जायेंगे I अब जहाँ इतने दिन वहीं दो दिन और सही I’     

 अब मैं नितिन को कैसे बताता कि स्वस्थ होकर हॉस्पिटल के वातावरण में रहना कितना कठिन काम है I न कोई किताब, न माहौल और नॉन फंक्शनल मोबाइल I फल वगैरह भी नहीं बचे थे I पर अब जब्त करने के सिवाय और कोई चारा नहीं था I      

[12]

 नवां दिन प्रतीक्षा में कटा और दसवां दिन आ गया I मेरे मोबा. में WI-FI सुविधा समाप्त हो चुकी थी I वाटस एप पर मेसेज आने बंद हो गये I गनीमत थी कि बात हो पा रही थी I मैं हॉस्पिटल आने के नाटकीय क्रम के बारे में सोचने लगा I अगर डॉ. सौरभ ने मुझे विवेकानन्द पॉली क्लीनिक न भेजा होता और वहाँ मेरा प्राथमिक इलाज और कोरोना टेस्ट न होता तो शायद समय से मुझे यह हॉस्पिटल न मिल पाता I मुझे फिर हॉस्पिटल का वह इंट्रेंस याद आया, जहाँ तीन अप्रैल के अंतिम क्षणों में को कुँवर जी और नितिन मुझे हौसला देने के लिए मेरे इन्तजार में खड़े थे I वह छवि मेरे आँखों में दृढ़ता से अंकित हो गयी है और निश्चित रूप से जीवन भर रहेगी I इस सत्य के समान्तर एक और बात से मैं बड़ा ही मुतासिर रहा कि कुँवर जी और नितिन ने हर बार मेरा फोन बड़ी तत्परता से उठाया I मुझे कभी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी I इतना ही नहीं हर बार दोनों ने मेरे कथन को गंभीरता से लिया और तदनुसार अपने स्तर से आवश्यक प्रयास किये I मैं कृतज्ञता ज्ञापन कर इस गुरु--गरिमा को बौना नहीं करना चाहता I

 किसी तरह यह दिन भी बीता I शाम हुयी I मोबाईल नॉन फंक्शनल होने से समय कैसे कटा, मैं ही जानता हूँ I मैंने काउंटर पर जाकर यह पता लगाने की कोशिश की कि मेरी कोरोना रिपोर्ट आयी या नहीं I पर वहाँ किसी को कुछ पता ही नहीं था I एक ने उकताकर मुझे टालने के अंदाज में कहा - ‘अभी नहीं आयी I’

  मैंने फिर नितिन से बात की I नितिन ने डॉक्टर से संपर्क कर स्थिति बताने का भरोसा दिया I रात के नौ बजे भोजन का पैक मिला I अब छोटी-छोटी चार रोटी से भला न होता था I भूख खुलकर लगने लगी थी i पास में जो कुछ भंडारण था उसमें       बिस्कुट तो बहुत बचे थे पर उनसे पेट नहीं भरा जा सकता था I निदान संतोष करना ही एकमात्र विकल्प था I

 साढ़े नौ बजे नितिन ने फोन कर बताया कि इंचार्ज डॉक्टर ने मेरी फाइल मंगा ली है I कल निश्चित रूप से डिस्चार्ज हो जायेगा I मेरे लिये यह सूचना सुखद थी I मैं विस्तर पर लेट गया और नींद की प्रतीक्षा करने लगा I 

  अंततः 14 अप्रैल 2021 का विहान हुआ I मन में जेल से आजाद होने जैसी भावना थी I फिर भी एक शंका थी कि आज जाने क्या हो ? जैसा चल रहा था, उस लिहाज से कब कोई कह दे कि आज भी आपको रुकना पड़ेगा I मैंने घर फोन लगाया I आठ दस बार घंटी बजने पर श्रीमती जी ने फोन नहीं उठाया I तब मैंने बेटे को फोन किया I यहाँ भी काल पर काल लेकिन उत्तर नहीं मिला I मैंने क्षुब्ध होकर बहू को दसियों बार फोन किया I सबको कई बार काल रिपीट की पर किसी से रेस्पोंस नहीं मिला I घर को लेकर मैं पहले भी शंकित था I मेरा मन आकुल हो उठा I अब एक ही विकल्प था कि छोटे बेटे रिशू को फोन लगाया जाए i रिशू का फोन तुरंत उठा I उसने कहा – ‘सब देर तक सोते हैं I अभी सो रहे होंगे I’

‘मगर नौ से अधिक हो चुका है I ज़रा पता लगाओ I’ – मैंने चिंतित स्वर में कहा I

 कुछ देर की इन्तजार के बाद मैंने फिर रिशू को फोन किया I उसने कहा अभी पडोस में फोन कर फिर बताता हूँ I इस बीच श्रीमती जी का फोन आ ही गया I मैंने क्षोभ भरे स्वर में शिकायत की तो उन्होंने दो-टूक उत्तर दिया –‘यहाँ हम और कुशी पोजिटिव हैं I कमजोरी के मारे कुछ सूझता ही नहीं I’

 मैं सकते में आ गया- ‘और बहू ?’

‘वह निगेटिव हैं, वही सको सँभाल रही है I’ 

‘मगर तुमने पहले मुझे बताया था कि सब लोग निगेटिव हैं I’

‘तो क्या करती I तुम्हे और चिंता में डालती I हम तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाए I खुद को घर पर ही क्वारंटाइन रखना पड़ा I’

‘निगेटिव रिपोर्ट कब आयी थी ?’

‘सात अप्रैल को‘

‘मतलब आज आठवां दिन है I ठीक है खतरे का समय बीत गया i अभी दो दिन वायरस को निष्क्रिय होने में और लगेगा I मैं आज रिलीव हो रहा हूँ I रिशू मुझे लेने आयेगा, उससे बात हो चुकी है I’

‘ठीक है, कब तक आओगे ?’

‘अभी कुछ कह नहीं सकता I’

  मेरा सारा क्षोभ काफूर हो चुका था I श्रीमती जी की बेतुकी बाते अब मेरे सामने स्पष्ट थी I बड़े बेटे ने के पास मेरी सुध लेने का न समय था और न शक्ति I उसने घर पर रहकर सबको संभाला, यह बड़ी बात थी I कोरोना की कमजोरी मैं भोग ही रहा था I मैंने सोचा ऐसी ही परिस्थिति से घर को लोग भी जूझ ही रहे हैं I

धीरे-धीरे दोपहर के बारह बज गए I मेरी अवमुक्ति का अब तक कोई लक्षण नहीं I मैंने फिर नितिन से बात की I उसने कुछ देर बाद स्थिति से अवगत कराने को कहा I उसकी अगली कॉल पाँच मिनट बाद ही आयी- ‘फूफा जी आपका कागज बन गया है अभी दस मिनट में आपको मिल जाएगा I आपको लेने रिशू आ रहा है I आप थोड़ा वेट कर लीजियेगा I’

‘शुक्र है, पर घरवालों ने मुझसे असली बात छिपाई I वहाँ कुशी और कंचन (श्रीमती जी) दोनों निगेटिव थे और उन्होंने होम क्वारंटाइन किया I मुझे हवा न लगने दी I’

 नितिन धीरे से हँसा और बोला- ‘फूफा जी आप तो ग्यारह तारीख को ही डिस्चार्ज हो जाते I हमने ही डॉक्टर से कहकर तीन दिन आपको हॉस्पिटल में और रखा ताकि कुशी और बुआ जी भी कुछ बेहतर हो जाएँ I’

 मुझे लगा जैसे किसी बिच्छू ने मुझे अचानक डंक मार दिया हो –‘तो तुम्हें सब पता था ?’

‘बिलकुल हम दोनों जगह मानीटर कर रहे थे I भगवान की दया से सब कोइ ठीक है I मैंने रिशू को कह  दिया है, वह घंटे भर में आपके पास पहुँच जाएगा I एप हॉस्पिटल छोड़ते समय हमे फोन करिएगा I’

 साढ़े बारह बजे एक कर्मी ने आकर मेरा नाम पुकारा और कहा कि आपको डॉक्टर साहब काउंटर पर बुला रहे हैं I मुझे लगा कि अब सचमुच विदा की घड़ी आ गयी I काउंटर पर डॉ. वी. के, सिह सिविल ड्रेस में उपलब्ध थे I मैंने उनका अभिवादन किया I  उन्होंने मेरे हाल पूछे, ऑक्सीमीटर से चेक किया I फिर दवा का एक पैकेट और डिस्चार्ज पेपर देकर उन्होंने मुझसे कहा –‘ Now you are  all right . I am  very happy to discharge you from here . You have to take these medicines for five days  and pl.  keep  yourself  further fifteen days  in home-isolation .

 मैं अभिभूत था I केवल इतना कह सका –‘Thank you sir.’ इतना कहकर मैं वापस अपने बेड पर आया I सामान समेटा और बेटे की प्रतीक्षा करने लगा I इसी बीच लंच के पैकेट आ गए I मैंने प्रसन्न मन से उसका भी लुत्फ़ लिया I अब हॉस्पिटल का स्टाफ मुझसे बेड खाली करने की जिद कर रहा था I मैंने कहा भी कि मेरा बेटा आता ही होगा I पर शायद नया मरीज आ चुका था I अतः एक कर्मी ने मेरा सामान उठा लिया और कहा- ‘चलिए आपको नीचे छोड़ देते हैं, जब बेटा आये तब चले जाना I’

मैंने वार्ड के सभी मरीजों को शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामना दी, अभिवादन किया और उस कर्मी के साथ चल पड़ा I काउंटर पर एक कार्मिक ने डिस्चार्ज पेपर को अपनी मोबाईल में कैद किया और फिर हम नीचे आ गए I रिशू कुछ ही मिनट में कार लेकर आ गया I उसके साथ जब मैं हॉस्पिटल कैंपस के बाहर खुली हवा में आया तो लगा मुझे ईश्वर ने अगर फिर से मुझे नया जीवन दिया है तो इसके भी जरूर कुछ मायने होंगे i

(मौलिक/ अप्रकाशित)

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