2122 2122
ये भी जीने की अदा है
ग़म खुशी में मुब्तला है
रात भी है चाँद भी और
चाँदनी की ये रिदा है
नेस्त हो जाएगा इक दिन
रेत पर जो घर बना है
हादसों के दरमियाँ इक
ज़िन्दगी का सिलसिला है
मखमली सा लम्स तेरा
सर्द जैसे ये सबा है
तुझमें है यूँ अक्स मेरा
तू कि जैसे आइना है
मैं नहीं तन्हा सफ़र में
साथ अपनो की दुआ है
छोर पर नाकामियों के
मंज़िलों का रास्ता है
साँस ही है इब्तिदा और
साँस ही तो इंतिहा है
नाखुशी ज़ाहिर करो तुम
दिल जलाना क्या बजा है
क्या कहूँ मैं क्या लिखूँ अब
चश्मे नम से क्या दिखा है
(रिदा= चादर, नेस्त= ध्वस्त, लम्स= स्पर्श, बजा= ठीक)
Comment
आदरणीया मंजरी जी रचना को समय देने एवं सराहना के लिये मैं आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ
आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार
हादसों के दरमियाँ इक
ज़िन्दगी का सिलसिला है - सत्य वचन ! बहुत खूब आ. शिज्जु भाई , गज़ल के लिये दिली बधाई ।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर ये आपका स्नेह है जो इतना मान दे रहें मैं जो भी लिखता हूँ बस आप सभी का आशीष होता है। आपका हार्दिक आभार
आदरणीय अजय शर्मा जी ये आपका स्नेह है, शुक्रिया आपका
आदरणीय मिथिलेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गुमनाम जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ
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