एक गमले में रोपा गया पौधा
उसका दायरा क्या है
बस वो गमला
जब तक वो गमले में है
कभी वृक्ष नहीं बन सकता
उस पौधे की जड़ों को
गमले से बाहर आना होगा
परिन्दों को उड़ना हो
तो उनकी सीमा क्या है
कोई नहीं
असीम आकाश फैला हुआ है
उन्हें अपने पर खोलने होंगे
हमें जीना हो तो
पूरी कायनात पड़ी है
हमें
ख़्वाहिशों को परवाज़ देना होगा
सपनो को
उम्मीदों का आकाश देना होगा
पौधे को
वृक्ष का रूप देने के लिये
ज़मीन देनी होगी
हमें
अपने दायरे से बाहर आना होगा
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शरदिंदु सर आप जैसे वरिष्ठ सिद्धहस्त रचनाकारों की सराहना आश्वस्त करती है आपका तहेदिल से शुक्रिया
सर्वप्रथम विलम्ब के लिये आप सभी से क्षमा चाहता हूँ, मेरे इस छोटे से प्रयास को आप सभी का स्नेह मिला आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर
आदरणीय शिज्जु भाई , बढ़िया अतुकांत चिंतन के लिये बधाई ।
सकरात्मक सन्देश देती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री शिज्जू जी !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको |
वाह आदरणीय शिज्जु शकूर जी वाह एक ऐसी रचना जो कुछ सोचने पर मज़बूर कर देती है आपकी पंक्तियाँ पाठक के अंतस को झकझोरती हैं।
एक गमले में रोपा गया पौधा
उसका दायरा क्या है
बस वो गमला
जब तक वो गमले में है
कभी वृक्ष नहीं बन सकता
उस पौधे की जड़ों को
गमले से बाहर आना होगा .... इस भाव के आगे मैं नतमस्तक सर।
शिज्जू भैय्या
आप जहा भी जाते है कमाल करते है i अब इस अतुकांत को ही लें i कमाल की रचना है i बधाई हो i सादर i
ग़ज़ल कहने वाली कलम आज़ाद नज़्म भी कितनी खूबसूरत कह सकती है, मालूम हुआ। रचना बहुत ही प्रेरणादायक एवं संदेशपरक हुई है, जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है।
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