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1212-1122-1212-112

" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "
मिला सुकून जो दिल को तो अब मलाल नहीं

बिना क़सूर ही मैं बज़्म से निकाला गया
गज़ब के पूछा किसी ने कोई सवाल नहीं

मैं अपने खुद के ही दम पर जहाँ में जी लूँगाा
जो हौंसला हो अगर कुछ भी फिर मुहाल नहीं

वफ़ा की राह पे चल कर किसी को कुछ न मिला
मगर मैं ज़िन्दा हूँ अब तक ये क्या कमाल नहीं

तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं

बहादुरी से लड़ा और जान भी दे दी
शहीद-ए-ग़र्दिश-ए-अय्याम की मिसाल नहीं

दिलों में आग भरी लोग मुँह से राम कहें
जहाँ में एक भी महबूब-ए-ज़ुल-जलाल नहीं

हम अब भी रातों को उठ उठ के उन को छूते हैं
हुई है उम्र मगर इश्क़ में ज़वाल नहीं

तू अपने दिल से कभी पूछ कर तो देख 'दिनेश'
कि शख़्सियत में तेरी क्यूँ कोई जमाल नहीं

-- दिनेश कुमार १७/१२/२०१४
( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by दिनेश कुमार on January 4, 2015 at 8:07pm
आ.नादिर खान साहब , आप के शब्दों से और अच्छा करने का बल मिला है। बहुत बहुत शुक्रिया सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on January 4, 2015 at 8:00pm
जी,गणेश सर जी, मतला बदलना है अभी, कोशिश करूँगा। हौसला अफजाई का बहुत शुक्रिया।
Comment by दिनेश कुमार on January 4, 2015 at 7:57pm
Shukriya aa. Ram shiromani Pathak ji.....honsala badane ke liye...
Comment by नादिर ख़ान on January 4, 2015 at 7:44pm

आदरणीय दिनेश जी, पहली बार आपकी रचना पढ़ी और बार बार पढ़ने को जी चाहा बहुत बहुत बधाई इस उम्दा ग़ज़ल के लिए .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 4, 2015 at 4:50pm

ग़ज़ल अच्छी हुई है, यदि तरही मिसरा //" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "// यह है तो सामान्यतः तरही मिसरा को मतला में बाँधने का चलन नहीं है. बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:33pm
अहा बहुत प्यारी ग़ज़ल।।हार्दिक बधाई आपको
Comment by दिनेश कुमार on January 4, 2015 at 6:19am
हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया आ. Shyam vermaji, Hari Prakash ji ,Anurag ji, Giriraj ji,Ajay sharma ji...स्नेह बनाए रखिएगा।
Comment by ajay sharma on January 3, 2015 at 10:54pm

तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं.............aur makhte ka sher bahut khoob hai ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 9:06pm

तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं
तू अपने दिल से कभी पूछ कर तो देख 'दिनेश'
कि शख़्सियत में तेरी क्यूँ कोई जमाल नहीं                     --  बहुत खूब आदरणीय दिनेश भाई , बढ़िया गज़ल और इन अश आर के लिए बधाई ॥

Comment by Anurag Prateek on January 3, 2015 at 8:51pm

 आदरणीय दिनेश कुमार जी

ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "

तरही मिसरा ही कमजोर है लेकिन आपकी ग़ज़ल दमदार है, बधाई सर 

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