1212-1122-1212-112
" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "
मिला सुकून जो दिल को तो अब मलाल नहीं
बिना क़सूर ही मैं बज़्म से निकाला गया
गज़ब के पूछा किसी ने कोई सवाल नहीं
मैं अपने खुद के ही दम पर जहाँ में जी लूँगाा
जो हौंसला हो अगर कुछ भी फिर मुहाल नहीं
वफ़ा की राह पे चल कर किसी को कुछ न मिला
मगर मैं ज़िन्दा हूँ अब तक ये क्या कमाल नहीं
तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं
बहादुरी से लड़ा और जान भी दे दी
शहीद-ए-ग़र्दिश-ए-अय्याम की मिसाल नहीं
दिलों में आग भरी लोग मुँह से राम कहें
जहाँ में एक भी महबूब-ए-ज़ुल-जलाल नहीं
हम अब भी रातों को उठ उठ के उन को छूते हैं
हुई है उम्र मगर इश्क़ में ज़वाल नहीं
तू अपने दिल से कभी पूछ कर तो देख 'दिनेश'
कि शख़्सियत में तेरी क्यूँ कोई जमाल नहीं
-- दिनेश कुमार १७/१२/२०१४
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय दिनेश जी, पहली बार आपकी रचना पढ़ी और बार बार पढ़ने को जी चाहा बहुत बहुत बधाई इस उम्दा ग़ज़ल के लिए .
ग़ज़ल अच्छी हुई है, यदि तरही मिसरा //" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "// यह है तो सामान्यतः तरही मिसरा को मतला में बाँधने का चलन नहीं है. बधाई इस प्रस्तुति पर.
तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं.............aur makhte ka sher bahut khoob hai ....
तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं
तू अपने दिल से कभी पूछ कर तो देख 'दिनेश'
कि शख़्सियत में तेरी क्यूँ कोई जमाल नहीं -- बहुत खूब आदरणीय दिनेश भाई , बढ़िया गज़ल और इन अश आर के लिए बधाई ॥
आदरणीय दिनेश कुमार जी
ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "
तरही मिसरा ही कमजोर है लेकिन आपकी ग़ज़ल दमदार है, बधाई सर
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