मेरा मन दरपन है।
देखी छब तेरी,
आँखों में सावन है।
वो पागल लडकी है।
ऐसी बिछडन में.
वो कितना हँसती है।
क्यूँ उलटा चलते हो।
वक़्त सरीखे तुम,
हाथों से फिसलते हो।
जब शाम पिघलती है।
ऐसे आलम में,
क्यूं रात मचलती है।
सूरज को मत देखों ।
उसका क्या होगा,
चाहे पत्थर फेंकों ।
सूरज ने पाला है।
हँसता रातों में,
ये चाँद निराला है।
तारें भी डरते है।
सूरज काला है,
छिप-छिप के विचरते है।
ये कौन बुलाता है।
भीतर ही भीतर.
मन हाथ हिलाता है।
मन पतझड़ जैसा है।
रस्तों में पत्ते,
फिर रस्ता भूला है ।
बरसों में लौटा हैं।
दिल भी बदलें है,
कुछ नक्शा बदला है।
ना आज महकता है।
खुशबू सनकी है,
ये फूल दहकता है ।
छब मेरी लाड़ो की।
याद करे दिल तो,
वो ओट किवाड़ो की ।
गम एक खिलाड़ी है।
खुशियाँ क्या जाने,
दिल एक अनाड़ी है।
पलभर जी जाने दो।
मेरी साँसों का,
बस क़र्ज़ चुकाने दो।
यूं शब भर मत गाओ।
थक जाओगे तुम,
तारों अब सो जाओ।
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(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
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माहिया
22-22-22 - फैलुन-फैलुन-फैलुन
22-22-2 - फैलुन-फैलुन-फ़ा
22-22-22 - फैलुन-फैलुन-फैलुन
Comment
आदरणीय नितिन गोयल जी, माहिया का बहुवचन संभवतः माहिए होता है, माहिए आपको पसंद आये, जानकार आश्वस्त हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय आशुतोष जी आपकी सदाशयता, आत्मीयता और स्नेह से अभिभूत हूँ
हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेश जी //आज का सफ़र एक नयी जानकारी के साथ आगे बढ़ रहा है .उम्दा फिर से बधाई
आदरणीय जवाहर सिंह जी .... सही कहा आपने। सराहना के लिए हार्दिक आभार।
एक नए विधा में रचना अति सुन्दर लगी ...इस मंच की यही खासियत है नयी विधा, नए शब्द विन्यास, कथ्य और भावों में सजगता आदि ...आदि!
वाह ! अति सुन्दर, मनमोहक माहिया के लिए बधाई।
आदरणीय गिरिराज सर, आपको माहिया पसंद आये हार्दिक आभार.
माहिया 3-मिसरों की उर्दू काव्य में एक विधा है जिसमें पहला मिसरा और तीसरा मिसरा हम क़ाफ़िया और हमवज़्न होते हैं और दूसरा मिसरा हमकाफ़िया हो ये ज़रूरी नहीं है लेकिन दूसरे मिसरे में 2-मात्रा कम होती है। पंजाबी में माहिया बहुत कहे गए है । जगजीत सिंह जी व चित्रा सिंह जी द्वारा गाये गए माहिया प्रसिद्द है इसकी लय बहुत मीठी है .इस लिंक से यूट्यूब पर सुने जा सकते है http://youtu.be/5CV6w01O95Q
हिन्दी फ़िल्म फ़ागुन में ओ पी नैय्यर जी के संगीत से सजे मुहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले जी द्वारा गाये माहिया इस लिंक से सुने जा सकते है http://youtu.be/PxCJUCGb2_c
तुम रूठ के मत जाना
मुझ से क्या शिकवा
दिवाना है दिवाना
यूँ हो गया बेगाना
तेरा मेरा क्या रिश्ता
ये तू ने नहीं जाना
उर्दू शायरी में माहिया के लिए निम्न बुनियादी औज़ान मुकर्रर हैं
22-22-22 - फैलुन-फैलुन-फैलुन
22-22-2 - फैलुन-फैलुन-फ़ा
22-22-22 - फैलुन-फैलुन-फैलुन
पहला मिसरा और तीसरा मिसरा हम क़ाफ़िया और हमवज़्न होते हैं जिसमे बारह मात्रा होती है जिससे 16 प्रकार के वज्न बनाए जा सकते है अर्थात एक गुरु के स्थान पर दो लघु लिए जा सकते है या लघु गुरु लघु के क्रम में किये जा सकते है किन्तु मिसरे के अंत गुरु 2 अनिवार्य है .
दूसरा मिसरा हमकाफ़िया हो ये ज़रूरी नहीं है लेकिन दूसरे मिसरे में दस मात्रा होती है जिससे 8 प्रकार के वज्न बनाए जा सकते है अर्थात एक गुरु के स्थान पर दो लघु लिए जा सकते है या लघु गुरु लघु के क्रम में किये जा सकते है किन्तु मिसरे के अंत गुरु 2 अनिवार्य है .
सादर
अब छोड़ नहीं सकता
मौसम बिगड़ा है
साथ लिए चलना |
साथी जब मान लिया
मन का उलझना क्या
साथ लिए बढना
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