2212 - 2212
हो वार अब के दूसरा
बेजार दिल दामन बचा
मेरे मुकाबिल तू खड़ा
कितना मगर तू लापता
लेकिन बता मैं हूँ कहाँ
चारो तरफ मैं चल रहा
ये लब लरजते कांपते
इनको मिली अबके सदा
जब जब यहाँ दंगें हुए
तब तब हुई कड़वी हवा
सूरजमुखी से बात कर
सूरजमुखी के पास जा
प्यासा समंदर मौज से
अक्सर कहे जा रेत ला
इस झील की परवाज़ है
आगोश में अर्ज़ो-समा
दिल का दिया 'मिथिलेश' क्यूँ
मज़बूर सा जलता रहा
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(मौलिक व अप्रकाशित)
© मिथिलेश वामनकर
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बह्र--ए-रजज़ मुरब्बा सालिम
अर्कान – मुस्तफ्यलुन / मुस्तफ्यलुन
वज़्न – 2212 / 2212
Comment
आदरणीय नितिन गोयल जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जानकार आश्वस्त हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर
मेरे सफ़र में सहभागिता के लिए आभार
आपका स्नेह अभिभूत किये दे रहा है आदरणीय आशुतोष जी
इस रचना पर भी हार्दिक बधाई ..आज मैं आपके साहित्यिक सफ़र के साथ सफर कर रहा हूँ उम्दा ..बधाई के साथ
आदरणीय शिज्जु सर, आप जैसे ग़ज़लगोई और अरुज के जानकार जब बधाई दे तो दायित्व बहुत बढ़ने लगता है, अभिभूत हूँ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर. हार्दिक आभार.
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर आपको रचना पसंद आई लिखना सार्थक हुआ, आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत उत्साह मिलता है, आपका ह्रदय से धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपकी टिप्पणी देखकर ही दिल खुश हो जाता है.. आपने मेरी हर रचना पर न केवल टिप्पणी की है बल्कि अमूल्य सुझाव भी दिए है आपका हार्दिक आभार. नमन
आदरणीय सौरभ सर,
आपकी विस्तृत टिप्पणी कई बार पढ़ी.... मेरे रचनाकर्म के लिए आज तक आई सबसे बड़ी टिप्पणी है. लग रहा है जैसे एक सन्देश है गुरु का शिष्य के लिए. ये सन्देश विलम्ब से पढ़ा इसलिए प्रतिक्रिया विलम्ब से देने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
आपने काफ़िया और रदीफ़ के निर्वहन विषयक जो जानकारी दी, वह अमूल्य है मेरे लिए.
-तकाबुले रदीफ़ का दोष पर सावधानी रखूंगा कि इसे आगे न दोहराऊँ
-आपके प्रश्नों से सदैव जिज्ञासा बढती है और उसके परिणाम सदैव एक बहुत अनमोल सीख दे जाते है.
-मैंने गज़ल-गुरुओं आदरणीय तिलकराज कपूरजी सर और भाई वीनस केसरी सर के पाठों का अध्ययन आरम्भ कर दिया है.
-आज आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ ये स्नेह सदैव बना रहे, इसके लिए सदैव सकारात्मक प्रयास और अभ्यास करता रहूँगा
-मंच के सभी आदरणीय गुनिजन मेरे प्रयास को स्नेह दे रहे है ये मेरा सौभाग्य है. इस स्नेह को कायम रखना और अभ्यास से इस दायित्व को निभाना मेरे लिए स्वमेव आवश्यक हो गया है.
भविष्य में आपका स्नेह सदैव बना रहे यही आशा है. यदि नासमझी में कोई भूल हो जाए तो शिष्य को क्षमा करने का दायित्व आपकों सौपता हूँ. अतिउत्साह में कई बार मेरे जैसे नौसीखियों से चूक हो जाती है. आपकी सीख और स्नेह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. अभिभूत हूँ आप जैसे गुनीजनों और इस मंच को पाकर. आपका ह्रदय से धन्यवाद, नमन, सादर
कहने कुछ है ही नहीं ,बस आप मंच के गुरुओं से आशीष ले ऐसे ही बढ़ते जाएँ |
आदरणीय मिथिलेश जी आपकी इस रचना पर कुछ सार्थक चर्चाएँ हुई है़ तदनुरूप सुधार करते हुये आपने जागरूक रचनाकार होने का परिचय दिया है ग़ज़ल तो लाजवाब थी ही अब और निखर के सामने आई है बहुत बहुत बधाई आपको
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