सिमट रहा है जीवन का वृत्त
परिधि कम ही होगी धीरे- धीरे
लोगों के टोकने पर
जाने लगा हूँ पार्क में टहलने
मन बहलता तो नहीं है
पर देता हूँ बहलने
शरीर को मेन्टेन रख्नना है
पर गलेगी देह भी धीरे-धीरे
वृत्त की परिधि कम होगी धीरे-धीरे
पढ़ना चाहता हूँ
किताबे दशको तक मित्र रही है मेरी
पर अब सब धुन्धला जाता है
चश्मा भी अब काम नहीं आता है
लिखना तो बंद था ही
हुयी पढने की भी मनाही
ज्योति भी यूँ ही बुझेगी धीरे-धीरे
वृत्त सिकुडेगा और धीरे-धीरे
जब सुन नहीं पाउँगा
बोल नहीं पाउँगा
चल नहीं पाउँगा
डोल नहीं पाउँगा
दूसरो के लिए बोझ बनूँगा धीरे-धीरे
वृत्त होगा फिर एक शून्य धीरे-धीरे
शून्य को भी होता है
अंत में सिकुड़ना
जिसे कहते परिधि का
केंद्र से जुड़ना
बिंदु से ही पूर्णता मिलेगी धीरे–धीरे
पूर्णता को प्राप्त करूंगा धीरे –धीरे
बिन्दु छोटा होकर
अदृश्य हो जाता हैं
पार्थिव दृष्टि से
नजर नहीं आत्ता है
मै भी नहीं दूंगा दिखाई धीरे–धीरे
पूर्ण होकर पूर्ण से मिलूंगा धीरे -धीरे
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते.
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते..
(ॐ पूर्ण है I यह पूर्ण है I पूर्ण से पूर्ण उदित होता
है I पूर्ण का पूर्ण लेकर पूर्ण ही शेष बचता है I )
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय दादा शरदिंदु जी
आपका कहना -इतनी आसानी से पूर्णत्व प्राप्त नहीं होगा' बिलकुल सत्य है i उतना ही शाश्वत यह भी है कि इन ज्क्लंत प्रश्नों के उत्तर अधर में हैं i सबके अपने अलग अलग कयास है i सादर i
आ० खुर्शीद जी
आपकी सुष्ठु प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हो गया i सादर i
आपका बहुत-बहुत आभार ii आ 0 गुमनाम जी
सोमेश जी
आपका बहुत-बहुत आभार i
आदरणीय अनुज भंडारी जी
आपकी अर्थ पूर्ण टिप्पणी से मन प्रसन्न हो गया i
आ० सरना जी
आपकी आत्मीय टिप्पणी से अभिभूत हुआ i सादर i
आ० हरिवल्लभ जी
आपकी टीप ने अभिभूत कर दिया i सादर i
विजय सर !
आपका बहुत-बहुत आभार i
आ० माहेश्वरी जी
आपका बहुत-बहुत आभार i
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