‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I
‘जी हाँ ----I’
‘कैसे सम्बन्ध थे ?’
‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’
‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’
‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’
‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’
‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे लिये गाली है पर मैंने उस मुंहजले को सारी सच्चाई तो पहले ही बता दी थी, फिर उस पर शैतान क्यों सवार हो गया !’
‘कैसी सच्चाई ?’
‘यही कि वह सेठ ही मेरी लडकी का बाप था I’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय दादा शरदिंदु जी
आपका स्नेह ही मेरा पाथेय है i सादर i
आ 0 अनुज
आपका हृदय से आभार i
नेआदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्या कहूँ ? आदरणीय सौरभ भाई जी ने सही कहा है , अंतिम पंच लाइन पढ के सच मे दिमाग मे सन्नाटा छा गया । समाज का एक काला पक्ष ये भी है ! लघु कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई ।
आ 0 सौरभ जी
आपका हार्दिक आभार i त्रुटि का परिमार्जन लाजिमी है i सादर i
ओह ! क्या कहा जाय ? समाज का यह पक्ष मात्र स्याह ही नहीं बल्कि दाँतुल भी है ! पशुवत !
प्रस्तुति के कथ्य पर क्या कहूँ ? दिमाग़ सुन्न है.
एक बात :
यही की की जगह यही कि होना चाहिये.
ऐसी प्रस्ततियों की पंच लाइनें व्याकरण के तौर पर बेदाग़ हों तो उनका प्रभाव अत्यंत गहन हुआ करता है.
सादर
लडीवाला जी
आपका सादर आभार i
हवस से बड़ा कोई नशा नहीं जिसमे डूबा आदमी को किसी रिश्तें का खयाल नहीं रहता | बहुत सुंदर लघु कथा के लिए बधाई
जीतू भाई
आपका स्नेह जिंदाबाद i
खैराबादी जी
अति कृतज्ञ हूँ i
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