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आदरणीय राहुल जी ..वाकई में शानदार ग़ज़ल ..कई बार पढ़ा ..आपकी रचना पर बिद्व्त्जानो की चर्चा से तमाम नयी जानकारी हासिल हुई . आपके इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई सादर
ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसका व्याकरण तनिक ज़िद्दी है. ऐसे में ग़ज़लकारों को ’ग़ज़ल के व्याकरण’ (अरुज़) की ज़िद्द माननी पड़ती है. इस ज़िद्द के अनुसार ही भाव और नियमों का सुगढ़ संयोग निभाना होता है. मिसरों में संतुलन बना कर चलना होता है. शुरुआत में जब हमआप सीखते हैं, तो सीखने के क्रम में सिर झुका कर ’ग़ज़ल के व्याकरण’ (अरुज़) की जिद्द को बस स्वीकार ही करना होता है. इसीसे ग़ज़लों की स्वीकार्यता बन पाती है और ग़ज़लकार वरिष्ठों द्वारा सुने-स्वीकारे जाते हैं.
जब आप स्थापित हो जायँ तो ग़ज़ल के अरुज़ पर साधिकार बात कर पाइयेगा. ऐसा हर ग़ज़लकार के साथ हुआ है, और होता रहेगा.
:-))
आदरणीयो मुझे बहुत कम नॉलिज है अगर मेरा कोई सवाल अटपटा हो तो मुझे क्रपया माफ भी कर दिया करों !
आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत शुक्रिया मुझे एक नई बात और सीखाने के लिए! आदरणीय मैं हमेशा इसका ध्यान रखुंगा! परन्तु क्या यह बहुत अनिवार्य होता है कहने का मतलब है अगर भाव सुन्दर हो तब भी! मैं ऐसे मिसरो को सुधारने का प्रयत्न करता हुँ!
जैसी ग़ज़ल के भाव हुए हैं उसी तरह के सटीक सुझाव आये हैं, तथा, उसी अनुरूप सार्थक प्रयास हुआ है. ग़ज़ल का मेयार और चढ़ा है. भावाभिव्यक्ति अभिभूत कर रही है.
यह अवश्य है कि एक-एक कर आप बहुत कुछ सीखते जायेंगे, राहुल भाई.
एक शुरु से मेरा यही कहना था आपसे. जबतक आप प्रयास ही नहीं करेंगे कोई क्या संवाद स्थापित करेगा ? आज आपके प्रयासों पर जिस आत्मीयता से सुझाव आ रहे हैं, यही किसी नये हस्ताक्षर की अपेक्षा हुआ करती है.
इस प्रस्तुति पर जब इतना कुछ आपने समझ लिया तो एक बात और जानें.
जब कोई बहर दो बराबर भागों में बँटती दिखे, जैसा कि इस बहर में हो रहा है - ११२ १२ / ११२ १२ .. तो दोनों भागों के वाक्यांश अलग-अलग रखने की कोशिश करें. वर्नाइसे दोष माना जाता है.
अब जैसे अपना मतला लीजिये -
तु गजल में थो / डा खुमार दे!....... ..यहाँ थोड़ा का थो एक हिस्से में और ड़ा दूसरे हिस्से में गया.
तु जरा सा और सँवार दे!!............. इसी तरह और का औ पहले हिस्से में और र दूसरे हिस्से में गया.
ऐसे मिसरों को दोषपूर्ण मानते हैं. इसे ’शिकस्ते ना’रवा’ का दोष कहते हैं.
जबकि नीचे वाले शेर को देखिये -
उसे भूल जा है जो बेवफा!............. उसे भूल जा एक हिस्से में तथा है जो बेवफ़ा दूसरा हिस्सा, यानि, यह परफ़ेक्ट मिसरा है.
ये लिबास गम का उतार दे!!... . . ...इसी तरह ये लिबास ग़म एक हिस्से में है तो का उतार दे दूसरे हिस्से में है. यानि यह भी परफ़ेक्ट मिसरा है.
विश्वास है, आप ऐसे तथ्यों को भी अपने समझ का हिस्सा बनाते चलेंगे.
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय राहुल भाई , इस मंच की यही ख़ासियत है कि यहाँ सभी सीखते भी हैं और सिखाते भी हैं , या कहें सही जानकारियाँ आपस मे साझा करते हैं । ग़लतियाँ भी होतीं हैं और सुधार भी । न निराश हों न ही कभी अपने को पूर्ण समझें । जीवन सतत सीखते रहने की शृंखला है । मुझसे भी इतना सिखाने के बाद अभी गलतियाँ होतीं है , और होती ही रहेंगी और मै सुधार करता रहूँगा । बस सीखने की लगन मत छोड़िये । आप भी हर रचना को इसी नज़रिये से पढ़ा कीजिये और जो भी ग़लत लगे हमें बताया कीजिये । यही तो सीखना - सिखना है ।
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