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गजल- जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन

212 212 212 212

एक है जान हम टुकडे दो जानेमन!
कैसे समझाए हम आपको जानेमन!!

हो नहीं सकते तुम दूर मुझसे कभी!
जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन!!

तुम दुआ हो मेरी मेरे अरमान हो!
जिन्दगी बन्दगी तुम ही हो जानेमन!!

देख लूं जो तुझे साँस आ जाती है!
जाएँगे मर अगर तू न हो जानेमन!!

तुमको 'राहुल' पे अब भी यकीं गर नहीं!
चीर कर दिल मेरा देख लो जानेमन!!

मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 8:24pm
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी शुक्रिया
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 19, 2015 at 5:58pm

राहुल जी सुंदर ग़ज़ल लिए ढेर सारी बधाई ...इस रचना पर हुई चर्चा के कारण नयी जानकारी मिली 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 1:27pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 1:26pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 12:29pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शुक्रिया! स्नेह बनाए रखे ! मुझ जौसे नये सीखने वालो को आप जैसे गुनीजनो के सुझाव की बहुत आवश्यकता है! सादर नमन
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 12:27pm
आदरणीय somesh kumar जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 19, 2015 at 12:26pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर सादर धन्यवाद! आपके सुझाव पर अवश्य गौर करुंगा सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2015 at 12:06pm

आदरणीय राहुल भाई , लाजवाब गज़ल कही है , सभी अश आर बहुत सुन्दर कहे हैं , हार्दिक बधाई कुबूल करें ।

जाएँगे मर अगर तू न हो जानेमन --- इस मिसरे को ----- मर न जायें अगर तू न हो जानेमन  ---कहें तो शादर और अच्छा लगे, 

वैसे वो मिसरा गलत नहीं है , फिर भी  , पढ़्ने मे अटकाव है । 

Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:42pm

सद्प्रयास पर बधाई|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 2:42pm

आदरनीय

वामनकर जी की टिप्पणी पर ध्यान दे i उनसे मेरी सहमति  है i सादर  i

कृपया ध्यान दे...

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