आपसी ताप से जलती टहनियाँ
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आँधियों की छोड़िये
हवा थोड़ी भी तेज़ बहे, स्वाभाविक गति से
टहनियाँ रगड़ खाने लगतीं हैं
एक ही वृक्ष की
आपस में ही
पत्तियाँ और फूल न चाहते हुये भी
कुसमय झड़ जाने के लिये मजबूर हो जाते हैं
टहननियों की अपनी समझ है ,
परिभाषायें हैं खुशियों की ,
गमों की
फूल और पत्तियाँ असहाय
जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं
वो जड़ें ,
जिन्होनें सब टहनियों के लिये एक जैसी खींची थी ,
भेजी थी ,
जीवनी शक्ति
धरती की गहराइयों तक जा कर
बाहर के उजाले का मोह त्याग स्वीकार किये,
घुप अँधेरे
क्या यही देखने के लिये
कि जल जायें टहनिययाँ उसके ही तने से लगी हुई
आपसी रगड़ से उत्तपन्न ताप से
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा जी , रचना के अनुमोदन के लिये आपका शुक्रिया ।
आदरणीय श्याम नारायण भाई , आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय जवाहर भाई , रचना की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आप्का हार्दिक आभार
आदरणीय सौरभ भाई , आपसे ऐसी सराहना पाके रचना धन्य हो गई , मेरी मेहनत सफल हुई । आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपका हार्दिक आभार ।
आदाणीया आशा जी , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय सोमेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय खुर्शीद भाई , आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढ़ा है , सराहना के लिये आपका आभार ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई |
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