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फिर से उगता हुआ जो पर देखा
तो बहुत झूम झूम कर देखा
धूप में झुलसा हर बशर देखा
तन पसीने से तर ब तर देखा
जल सके आग, कोशिशें देखीं
दिल में सुलगा हुआ शरर देखा
कारवाँ साथ था चला लेकिन
खुद को ही खुद का हम सफ़र देखा
सर परस्ती रही सियासत की
ज़ुर्म कर जो झुका न सर देखा
हद के बाहर दुआ में हाथ उठे
हर , अमल में बहुत कसर देखा
ताज में ताब थी या सर में थी
जाना, जब सर को बे असर देखा
आदतें छोड़ती नहीं यारों
पीछे आतीं हैं, भाग कर देखा
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मौलिक एअव अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी , लम्बे अंतराल के बाद आपको मंच मे फिर से सक्रिय देख बहुत अच्छा लगा ।
ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक आभार ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही आ० गिरिराज भंडारी जी
सभी अशआर पसंद आये , लेकिन
कारवाँ साथ था चला लेकिन
खुद को ही खुद का हम सफ़र देखा..........इस शेर के लिए तो बहुत बहुत बधाई
सादर.
आदरणीय ख़ुर्शीद भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल शुक्रिया , नज़रे करम बनाये रखें ।
आदरणीया राजेश जी ,आपकी सराहना ने मेरे प्रयास को पूर्णता प्रदान कर दी , आपका दिल से आभारी हूँ ।
धूप में झुलसा हर बशर देखा
तन पसीने से तर ब तर देखा
जल सके आग, कोशिशें देखीं
दिल में सुलगा हुआ शरर देखा
आदरणीय गिरिराज सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार मनभावन लगे |सादर अभिनन्दन |
कारवाँ साथ था चला लेकिन
खुद को ही खुद का हम सफ़र देखा---बहुत खूब
आदतें छोड़ती नहीं यारों
पीछे आतीं हैं, भाग कर देखा--क्या कहने
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई हार्दिक बधाई आ० गिरिराज जी
आदरणीया प्रतिभा जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय राहुल भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई , उत्साह वर्धन के लिये बहुत आभार ।
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