"अरे!! तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”
“हाँ! साहब, अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब, वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे, तो इन्हें अपने घर ले आया...”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
उत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय विनय जी
सादर!
अच्छा कटाक्ष करती लघुकथा है , बधाई आपको..
आदरणीय गिरिराज जी, आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है. आपका ह्रदय से आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय हरिप्रकाश जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर बहुत मनोबल मिला, आदरणीया कांता जी. आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ
सादर!
आपकी विस्तृत व् सटीक प्रतिक्रिया लघुकथा की सार्थकता का प्रमाण दे रही है आदरणीय शिज्जू जी. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार , आदरणीय वीर मेहता जी.
सादर!
रचना आपका आशीर्वाद पाकर, धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी. स्नेहिल आशीर्वाद बनाए रखियेगा
सादर!
आदरणीया राजेश दीदी, आपकी स्नेहिल व् मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया की सदा प्रतीक्षा रहती है. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
आदरणीय विनोद जी, आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
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