वर्ष फिर बीत गया
यूँ दे गया, अनुभव
जीने के
लड़ने के, अंधेरों से
रौशनी के लिए
सत्य से सत्य को
छीन लिया
असत्य से असत्य
छोड़े भी और मांग भी लिए
अधिकारों को
थोड़ी सी घुटन में
राहों में चलते रहे
अपनों के साथ
अपनों के ही लिए
जान लिया, पहचाना भी
समझ भी तो गये
अँधेरा और दुःख
दोनो ही तो, चाहिए
रौशनी और सुख के साथ-साथ
बड़ा अच्छा लगता है
इनके बीच की
दूरियों को पाटना
अनुभव भी तो मिलता है
पल-पल, पहर दर पहर
सुबह से शाम, और
शाम से रात तक
ताकि, आती रहें यूँ ही
नयी-नयी सुबहें
नये संघर्ष लेकर,
हर वर्ष
सच! विगत वर्ष की तरह..
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना पर आप सभी की उपस्थिति व् स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आप सभी का आभारी हूँ.
सादर !
आती रहें यूँ ही
नयी-नयी सुबहें
नये संघर्ष लेकर,
हर वर्ष
सच! विगत वर्ष की तरह------------------------ ati sundar jeetu bhaiyya .
जान लिया, पहचाना भी
समझ भी तो गये
अँधेरा और दुःख
दोनो ही तो, चाहिए
रौशनी और सुख के साथ-साथ
बड़ा अच्छा लगता है
इनके बीच की
दूरियों को पाटना
अनुभव भी तो मिलता है|
समय पर अच्छा विमर्श है इस कविता में ,रोशनी ऐसे लिखें ,नव वर्ष की आपकी नव प्रस्तुति पर थे दिल से बधाई
ताकि, आती रहें यूँ ही
नयी-नयी सुबहें
नये संघर्ष लेकर,......बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी, हार्दिक बधाई !
आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत सुंदर रचना है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई। |
पल-पल, पहर दर पहर
सुबह से शाम, और
शाम से रात तक
ताकि, आती रहें यूँ ही
नयी-नयी सुबहें
नये संघर्ष लेकर,
हर वर्ष
सच! विगत वर्ष की तरह..
आदरणीय जितेंदर जी , नवल भावाभिव्यक्ति है | अतुकांत में भी गीत सा प्रवाह और गति है | आपको नववर्ष की शुभकामना सहित -सादर अभिनन्दन
सच ! विगत वर्ष की तरह, जो कुछ अनुभव दे जाता है, इसीलिए तो जाने वाले की विदाई पर आभार व्यक्त किया जाता है | सुंदर भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई -
स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,
समय लगे शुभ काज में, सार्थक समय व्यतीत
नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार,
समय चक्र गतिशील है, समय जायगा बीत |
-लक्ष्मण रामानुज
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