OBO पर आकर बहुत अच्छा लगा. यहाँ पर एक से एक उस्ताद शायर और कवियों की रचनाएं पढ़कर आनंद आ गया.
अपनी एक नयी ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ, आप सब से मार्गदर्शन की आशा है.
अँधेरा है नुमायाँ बस्तियों में
उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में
ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में
फ़लक पर जो दिखा था एक सूरज
कहीं गुम हो गया परछाइयों में
तेरी महफ़िल से जी उकता गया है,
सुकूँ मिलता है बस तन्हाईयों में
लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में
उतरना ध्यान से दरिया में 'साहिल'
मगरमच्छ भी छुपे हैं, मछलियों में
--- संदीप 'साहिल'
Comment
वाह साहिल जी क्या खूब शेर कहे आपने बिलकुल प्रासंगिक और प्रभावी अंदाज़ है आपका | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको |
लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में
बिलकुल नए तरह का शेर नयी ज़मीन पर ..बहुत बहुत बधाई |
संदीप साहिल जी, छोटी बहर में बहुत ही आला पाए के आशार कहे हैं आपने, पढ़कर दिल को सुकून मिला ! यूँ तो सभी शे'र बहुत खूबसूरत हैं मगर यह शे'र हुस्न-ए-ग़ज़ल है :
//लिए जाता हूँ काश, मैं फिर लिए हूँ,
तेरी यादों का सिगरेट उँगलियों में !//
वाह वाह वाह - बहुत खूब !
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