"कम्मो।जरा इधर तो आ, तूने अचानक काम पर आना कयों बंद कर दिया?" मिसेज माधवी ने बालकनी की खिड़की से ही गली में गुजरती अपनी काम वाली बाई को आवाज लगाई।
"जी मेम साहब। वो क्या है कि अब हम आप के यिहाँ काम नही करेगें।" कम्मो भी गली से ही लगभग चिल्लाती हुयी बोली।
"क्यों कहीं और ज्यादा पैसे मिलने लगे या पैसो की जरूरत नही रही।" मिसेज माधवी की आवाज में कटाक्ष था।
"नही मेमसाहब, बस ऐसे ही...... बच्चे जवान हो गये ना।"
"तेरे बच्चे ?"
"नही नही मेमसाहब ! मेरे नहीं, आपके बच्चे जवान हो गये है।"
मिसेज माधवी की खिड़की खटाक से बंद हो चुकी थी।
"मौलिक व अप्रकाशित"
'वीर मेहता'
Comment
बहुत बढ़िया लिखा है
कमाल की लगुकथा पढ़ने को मिली - बधाई हो
Shree Gumnaam pithoragarhiji....Jitender Pastariyaji....and Vishwa Raj Singh Rathoreji....
Prothsaahan dene ke liye aur katha par nazar daalane ke liye aap sabhi ka tahe dil se aabhaari hu.
खूब,,,,,,,,,,,,,,, कम शब्द ज्यादा बात वाह खूब
सुंदर विषय, आदरणीय वीर जी. बधाई
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