For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में

तरही ग़ज़ल 

नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में 

वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में 

अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की 

जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में 

बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं 

नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में 

दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के 

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में 

है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा है 

फिज़ाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में 

मुझे अफ़सोस हरदम ही रहा है दोस्तों इसका 

क्यूँ जनता आग पैसों में लगाती है दिवाली में 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:05pm

आदरणीया प्रतिभा जी ..आप की प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:03pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी ..आप की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 8:02pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ,,रचना पअर आपकी उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 7, 2015 at 11:10pm

आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा बहुत ही शानदार रचना

दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में ....वाह , हार्दिक बधाई ! सादर

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:14pm

बहुत खूबसूरत गजल हुई है आदरणीय डा. आशुतोष जी. दिली बधाई कुबूल कीजियेगा

मुझे अफ़सोस हरदम ही रहा है दोस्तों इसका 

क्यूँ जनता आग पैसों में लगाती है दिवाली में ........बहुत सार्थक प्रश्न रख छोड़ा

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2015 at 12:56pm

आदरणीय सर्वेश जी .रचना आपको पसंद आयेमेरा प्रयास सार्थक हुआ .आपकी उत्साहवर्धन करती इस प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल धन्यवाद सादर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2015 at 12:53pm

आदरणीय विजय सर ..आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2015 at 12:52pm

आदरणीय श्याम जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2015 at 12:51pm

आदरणीय खुर्शीद जी  रचना पर आपकी उर्जा प्रदान करती इस प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद ,,सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2015 at 12:50pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..मैं आज जो कुछ भी लिख पा रहा हूँ उसमे आपके स्नेह और उत्साहवर्धन का बिशेष स्थान है ..आपका स्नहे यूं ही मिलता रहे .इसी कामना के साथ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service