For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ख़ुद को दुहराने से है अच्छा रुक जाना

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२

 

फिर मिल जाये तुम्हें वही रस्ता, रुक जाना

ख़ुद को दुहराने से है अच्छा रुक जाना

 

उनके दो ही काम दिलों पर भारी पड़ते

एक तो उनका चलना औ’ दूजा रुक जाना

 

दिल बंजर हो जाएगा आँसू मत रोको

ख़तरनाक है यूँ पानी खारा रुक जाना

 

तोड़ रहे तो सारे मंदिर मस्जिद तोड़ो

नफ़रत फैलाएगा एक ढाँचा रुक जाना

 

पंडित, मुल्ला पहुँच गये हैं लोकसभा में

अब तो मुश्किल है ‘सज्जन’ दंगा रुक जाना

-----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:39am

मिथिलेश  जी आपकी टिप्पणी मुझे अन्यथा नहीं लगी :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 7:58pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई जी आपकी ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया के बाद ये ग़ज़ल कई बार गुनगुनाई... आपने सही कहा बह्र पकड़ में आने में थोड़ा समय लगता है..आखिर में बह्र पकड़ में आ गई... (ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर) संकलन में आपकी कई बेहतरीन गज़लें पढ़ चूका हूँ....इसलिए आशंका  तो थी  कि बह्र मैं ही नहीं पकड़ पा रहा हूँ.... लेकिन पहले प्रयास की असफलता उस टिप्पणी का कारण बनी...आपने बह्र बदलने की जो बात कही है उसके हवाले से निवेदन है कि मैंने बह्र बदलने नहीं कहा है सिर्फ एक पाठक की हैसियत से अपनी राय साझा की है ...और निवेदित भी किया है मेरे हिसाब से ....... खैर बहरहाल आपको टिप्पणी अन्यथा लगी उसके लिए क्षमा चाहता हूँ. वह केवल  त्वरित प्रतिक्रिया का परिणाम थी. सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:51pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ  गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:51pm

बहुत बहुत धन्यवाद  umesh katara जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:51pm

बहुत बहुत शुक्रिया बागी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:50pm

ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया  मिथिलेश जी।

बह्र दर’असल अपनी अपनी पसंद की बात है। किसी को कोई ख़ास बह्र अच्छी लग जाना कोई बड़ी बात नहीं है। कुछ लोगों को एक बह्र की गेयता दूसरी बह्र से बेहतर लग सकती है। इसके कारणों पर बहस हो सकती है लेकिन ग़ज़लकार किसी भी बह्र में ग़ज़ल कहने के लिए स्वतंत्र होता है।  ग़ज़ल कहने के बाद ग़ज़ल की बह्र बदलने के लिए कहना अर्थहीन है। किसी दूसरे को आप वाली बह्र की गेयता कम लग सकती है। बहरहाल अगर बह्र न टूटे तो गेयता में कहीं से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, हाँ ये हो सकता है कि जब आप पहली बार किसी बह्र से रू-ब-रू हों तो आपको उसकी गेयता पकड़ने में थोड़ा समय लगे।

आशा है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:42pm

बहुत बहुत धन्यवाद  डॉ गोपाल नारायन जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:41pm

शुक्रिया  JAGDISH PRASAD जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:41pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Hari Prakash Dubey जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 6:26am
आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा है। अगला ब्लॉग पोस्ट करने से पहले पिछले ब्लॉग पर प्रतिउत्तर अवश्य देने का कष्ट करें। सादर निवेदन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service