लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..
आराम फरमा रहे हैं वो जंगों में...
दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा
ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में..
किसने बनाये हैं ये सनमकदे...
ख़ुदा भी बंट गया बन्दों में...
मेरी इन्ही आँखों ने,नजर में तेरी ए-सनम
देखा है खुद को कई रंगों में..
है किसे तौफ़ीक जो गैरों के चाक सिले?
मै भी नंगा हो गया नंगों में....
‘’मौलिक व अप्रकाशित’’
२०१४ में उ.प्र. में फैले दंगों के ऊपर
-‘जान’ गोरखपुरी
Comment
शुक्रिया आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी!!
सुन्दर रचना है भाई कृष्ण मिश्र जी , बधाई आपको !
लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..
आराम फरमा रहे हैं वो जंगों में...
दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा,
ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में.. सुन्दर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online